आईये कभी इस झोपड़ी में 80 साल के जज़्बात वाले हाथ का लिट्टी खाने
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आईये कभी इस झोपड़ी में 80 साल के जज़्बात वाले हाथ का लिट्टी खाने

स्वागत है आपका 

Silsila Zindagi Ka के आज के ब्लॉग पोस्ट में। कुछ दृश्य ऐसे होते हैं, जो बहुत कुछ बोलने को मजबूर कर देते हैं। जैसे इस एक तस्वीर में मुझे कुछ कहने पर मजबूर कर दिया।

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 हाँ, यह सच है

जीवन इतना आसान नहीं साहब!

यहाँ हर रोज़,

मर-मर के जीना पड़ता है।

आईये कभी इस झोपड़ी में  80 साल के जज़्बात वाले हाथ का लिट्टी खाने



ज़ख्म चाहे लाख गहरा हो,


हँसकर पीना पड़ता है।


भरी दोपहरी में सूरज

जल रहा था।

उम्र 80 साल है पर,


आग पर हाथ

चल रहा था।


जैसे वो सूरज को

चुनौती दे रहे थे।

आईये कभी इस झोपड़ी में  80 साल के जज़्बात भरे हाथ का लिट्टी खाने


जलती गर्मी को

मात दे रहे थे।


रोक सको तो रोक लो।

मेरे जज़्बात को

मेरे हाथ को।

अडिग खड़ा रहूँगा,

हर दर्द सहूँगा।


यूं रुकने वाला नहीं,

यूं झुकने वाला नहीं।

और ना ही थकुंगा।


शान और स्वाभिमान से,

दर्द की मुस्कान से।

जीऊंगा।

हर गम को पीऊंगा।


ना जीवन के रंग कम होंगे,

ना कभी उमंग कम होंगे।


लिट्टी पकाता रहूँगा,

जलते चूल्हे पर,

आग की तपिश बढ़ाता रहूँगा।

पढ़िए:  एक दिन जरुर बदलेगी ज़िन्दगी

हाँ, उम्र थोड़ी ढल चुकी है,

जोश थोड़े पिघल चुके हैं।

पर हम तो ढलती उम्र के साथ,

दुगना मेहनत करते जा रहे हैं।

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लिट्टी चोखे में

हम अपने जोश और जुनून का,

स्वाद भरते रहेंगे।


पर हम आपका

रास्ता ताकते रहेंगे।

कंपकपाती मड़ईया से, 

झांकते रहेंगे।


आईये साहब!

चोखा तैयार है,

बस लिट्टी की 

एक पलटन बाकी है।

आप खा लेंगे,

तो थोड़ा हौसला 

बढ़ जाएगा।

मेरे जज़्बात और भी

मजबूत हो जाएंगे।


आईये।

कभी मेरी ढ़लती उम्र के जुनून

का लिट्टी खाईये।

आईये। 


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