राहत इंदौरी, जी हाँ इस नाम को तो आपने सुना ही होगा। ग़ज़ल, नज़्म, शेर इनकी कलम से जब भी निकले, बेमिसाल बन गए। समय-समय पर इन्होंने हर परिस्थिति ...
राहत इंदौरी, जी हाँ इस नाम को तो आपने सुना ही होगा। ग़ज़ल, नज़्म, शेर इनकी कलम से जब भी निकले, बेमिसाल बन गए। समय-समय पर इन्होंने हर परिस्थिति को देखते हुए अपने अल्फाज़ो से इन्होंने एक नया इतिहास लिखा है।
राहत इन्दौरी की शायरी जहाँ एक अलग दुनिया में लेकर जाती है, तो वहीं इनके नज़्म सबकी ज़िंदगी के फ़साने कहते हैं। बेशक़ इंदौरी साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी ज़ुबान पर आते ही उनका चेहरा खुद-ब-खुद हमारी आँखों के सामने झलकने लगता है।
Silsila Zindagi Ka लेकर आया है Rahat Indori के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे।
तूफ़ानों से आँख मिलाओ
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे
ज़ुबां तो खोल
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
होटों पे चिंगारी रखो
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
होटों पे चिंगारी रखो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
बहुत गुरुर है
बहुत गुरुर है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
मैं बच भी जाता तो
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला थाअंदर का ज़हर चूम लियाअंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसेरोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैंएक चिंगारी नज़र आई थीनींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं
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