Rahat Indori के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे
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Rahat Indori के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे

राहत इंदौरी, जी हाँ इस नाम को तो आपने सुना ही होगा। ग़ज़ल, नज़्म, शेर इनकी कलम से जब भी निकले, बेमिसाल बन गए। समय-समय पर इन्होंने हर परिस्थिति को देखते हुए अपने अल्फाज़ो से इन्होंने एक नया इतिहास लिखा है।

के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे


राहत इन्दौरी की शायरी जहाँ एक अलग दुनिया में लेकर जाती है, तो वहीं इनके नज़्म सबकी ज़िंदगी के फ़साने कहते हैं। बेशक़ इंदौरी साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी ज़ुबान पर आते ही उनका चेहरा खुद-ब-खुद हमारी आँखों के सामने झलकने लगता है।


10 चमत्कारी रास्ते


Silsila Zindagi Ka लेकर आया है Rahat Indori के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे


10 रास्ते बदल देंगे जीवन


तूफ़ानों से आँख मिलाओ


तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो

मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो


ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे

जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे


31 बेवफ़ाई शायरी 


ज़ुबां तो खोल

अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे

जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे

होटों पे चिंगारी रखो

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

बहुत गुरुर है

उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं


मैं बच भी जाता तो 
rahat indori के 19 चुनिंदा शेर जो आपके दिल को छू जाएंगे



किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था

मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था

अंदर का ज़हर चूम लिया 

अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए


रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं

एक चिंगारी नज़र आई थी 

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं

एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

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