Poem: आदित्य कुमार अश्क़ की एक सुंदर रचना"ये तुम्हारा पत्थर का शहर"
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Poem: आदित्य कुमार अश्क़ की एक सुंदर रचना"ये तुम्हारा पत्थर का शहर"

Poem By Heart

ये तुम्हारा पत्थर का शहर
जहाँ रोज गुम हो जाती हैं
कई चीखें कई आहें।
भावनाओं को रौंदा जाता है,
पैरों के तले।
मोहब्बत को दफनाया जाता है,
जिस्मों के कब्रों में।
इंसानियत की कत्ल होती है
रोज सड़कों पर।
कोई देवता कोई देवी नहीं है यहाँ
हर शख़्स एक नाक़ाब ओढ़े है।
मुस्कुराहट और हँसी सब फरेब है
मोहब्बत जिस्मों का बाजार है
दिल तो कब का मर चुका यहाँ।
पता नहीं था ये रिवाज हमें कि
एक चेहरा कई नाक़ाबों में है।
दिल को खिलौना समझा जाता है
और खेला जाता है जी भर के।
हम नादान थे तुम्हारे शहर में
सच्चा प्यार ले के आ गए और
वही हुआ जो होना था।
मसला गया रोज जज्बातों को
रोज मिटाता रहा मैं खुद को।
पर तुम्हारे शहर में
आँसुओ का कोई मरहम नहीं है
दर्द की कई कहानी साथ लेकर
तुम्हारे हर निशानी साथ लेकर
जा रहा हूँ तुम्हारा शहर छोड़कर
इससे पहले कि तुम मुझे पत्थर बना दो।
              "आदित्य कुमार अश्क़"

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