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फिर से यादों का सागर उमड़ पड़ा है

फिर से यादों का सागर उमड़ पड़ा है हाँ, तेरी तुम्हारी  यादों का सागर. और यादों के सागर में ना जाने कितनी कही -अनकही बातों की तरंगें हैं...




फिर से यादों का सागर उमड़ पड़ा है
हाँ, तेरी तुम्हारी  यादों का सागर.
और यादों के सागर में
ना जाने कितनी कही -अनकही
बातों की तरंगें हैं.

वो मिलना और बिछड़ना.
वो रूठना और  मनाना
वो कसमें और  वादें
वो प्यार और तकरार
वो खुशियाँ और दर्द
वो मोहब्बत और इबादत
वो नफ़रत और चाहत
वो बेचैनियाँ वो राहत

सब कुछ यादों के सागर में
अभी भी ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है.
सोचता हूँ कि अब इन यादों को
कभी याद नहीं करूँगा.

लेकिन क्या करूँ?
मजबूर हूँ
तुम्हारे  नाम की कोई हवा आती है
और जैसे ही तरंगों को छूती है
तुम्हारी यादों का सागर फिर से उमड़ पड़ता है.

एक ख्वाहिश है मेरी
आ फिर से आ
मुझसे मिलने के लिए नहीं
मुझे प्यार करने के लिए ही नहीं
और ना ही मेरा हाथ थामने के लिए.
बस इन यादों के सागर को समझाने के लिए
कि यूं वक़्त-बेवक्त ना उमड़ा करे.
मुझे यकीं है तुम्हारी बात वो समझ जाएगा
और मेरे दिल को भी शायद सुकूं मिल जाएगा.

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