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Mother Story: एक माँ और बेटे की कहानी, A heart touching Mother story

Hindi Story Of Mother and son Silsila Zindagi Ka आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है माँ और बेटे की एक Heart Touching Story , जो महज़ एक St...

Hindi Story Of Mother and son
Silsila Zindagi Ka आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है माँ और बेटे की एक Heart Touching Story, जो महज़ एक Story ही नहीं है बल्कि पूरी तरह यथार्थ है।

Mother Story:Hindi Story Of Mother and son
संदीप अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। महज़ 8 साल का होगा कि उसके पिता जी इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। संदीप के लालन-पालन से ले कर सारी चीजों की जिम्मेवारी उसकी माँ पर आ गई। लेकिन उसकी माँ किसी भी परिस्थिति में घबराई नहीं। बल्कि उसने हर परिस्थिति का सामना डांटकर किया और उसने संदीप की हर ख़्वाहिशें पूरी की। 

कई घरों में बाई का काम करती थी। सिलाई करती थी। ख़ुद भूखे सो जाती थी। लेकिन संदीप को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होने देती थी। वो हर कीमत पर संदीप को बड़ा बनाना चाहती थी। वो नहीं चाहती थी कि संदीप को इस चीज़ को कभी एहसास हो कि उसके पिता नहीं हैं तो उसकी ख़्वाहिशें पूरी नहीं हो पाती हैं। 
वक़्त इतना तेज गुज़रता है कि पता ही नहीं चलता कि संदीप कब बड़ा हो गया और नौकरी करने लगा और उसकी माँ बूढ़ी हो चली। अच्छी कंपनी में अच्छे पोस्ट पर कार्यरत संदीप को देखकर उसकी माँ की खुशी का ठिकाना नहीं था। देखते-देखते संदीप के रिश्ते के।लिए लोग आने लगे और संदीप ने यह सोच कर एक पढ़ी-लिखी लड़की से शादी कर ली कि उसकी माँ की सेवा और घर संभालने के लिए कोई तो हो जाएगा।

लेकिन हुआ उल्टा। संदीप की पत्नी संगीता भी अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी थी। दौलतमंद परिवार से belong करने वाली। वो भला घर का काम क्या करती, उल्टा संदीप की माँ को ही उसे खाना बना कर देना पड़ता था और उसकी सेवा भी करनी पड़ती थी। संदीप भी संगीता को बहुत मानता था। क्योंकि संगीता ने उस पर जादू जैसा कर दिया था।
संगीता दिन भर में संदीप की माँ की 100 गलतियां गिनाती थी और संदीप संगीता की बातों पर यकीन कर अपनी माँ को डांटना शुरू कर देता था।
देखते-देखते नौबत ऐसी आ गई कि संदीप और संगीता को अब संदीप की माँ इस घर में बोझ लगने लगी थी और संगीता ने एक दिन संदीप को सुझाव दिया कि वो अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ आये। संदीप थोड़ा सा इस बात पर हिचकिचाया पर संगीता के बार-बार कहने पर वो अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ आया और अपनी माँ से कहा हमारा ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया है। तुम चिंता मत करना माँ, मैं तुम्हें लेने आऊंगा, ज़ल्दी ही।
15 साल गुज़र गए। अब संदीप की माँ पूरी तरह बूढ़ी हो चली थी। आँखें के सामने धुंधलापन छाने लगा था। वो रोज़ उस वृद्धाश्रम के गेट पर बैठ कर पिछले सालों से इंतज़ार कर रही थी कि उसका बेटा उसे ले जाने के लिए एक दिन ज़रूर आएगा। लेकिन अभी तक संदीप लौट कर नहीं आया था।
रोज़ की तरह एक दिन संदीप की माँ उसी वृद्धाश्रम के गेट पर बैठी धुंधली आँखों से संदीप का रास्ता देख रही थी। तभी संदीप की एक पुराना दोस्त राकेश, जो संदीप के college में साथ पढ़ता था और दोनों close friend थे। एक NGO के काम से उस वृद्धाश्रम में आता है। उसकी नज़र गेट पर बैठी संदीप की माँ पर पड़ती है। वो उनके पास जाता है और कहता है- चाची।
चाची शब्द सुनते ही संदीप की माँ राकेश को धुंधली आँखों से देखने की कोशिश करती है। लेकिन पहचान नहीं पाती है और पूछती है- कौन?
राकेश कहता है- चाची,मैं राकेश। संदीप के साथ कॉलेज में साथ पढ़ता था। अचानक जैसे संदीप की माँ को सब कुछ याद आ जाता है और राकेश का हाथ पकड़ते हुए कहती है- हाँ, राकेश। कैसे हो बेटा.....? राकेेश कहता है- ठीक हूँ चाची, पर आप यहाँ क्या कर रही हैं-?
संदीप की माँ उदास और नम आँखों से कहती है- इंतज़ार! राकेश पूछता है- किसका इंतज़ार चाची? संदीप की माँ दूसरी दिशा में देखते हुए कहती है- अपने बेटे का, संदीप का। पिछले 15 सालों से संदीप का रास्ता देखती हूँ। रोज़ यहाँ बैठ कर उसका इंतज़ार करती हूँ। क्योंकि वो बोल गया था मुझसे कि तुम यही रहना, मैं तुम्हें ले जाने के लिए एक दिन ज़रूर आऊंगा। 
इतना सुनते ही संदीप की आँखें भर आती हैं। संदीप की माँ अपनी आँखों के आंसू को पोछते हुए कहती है- बेटा राकेश! संदीप मील तो उससे कहा देना। बहुत सालों हो गए उसको देखे हुए। एक जमाना बीत गया, उसके नाज़ुक सी हाथों को नहीं छूआ मैंने। उससे कहना कि तुम्हारी माँ रोज़ तुम्हारा रास्ता देखती है। उम्र के साथ-साथ आँखें भी बूढ़ी हो चली हैं। धुंधली आंखों से और कुछ साफ तो नज़र नहीं आता, पर थोड़ी सी रोशनी जो बचा के रखी हूँ उसी के लिए। इस रोशनी के ख़त्म होने से पहले वो एक बार आ जाये। मुझे कुछ नहीं चाहिए उससे। उसके साथ, उसके घर पर भी नहीं रहना है मुझे। बस, बस.....एक बार उसे देखना है।

आंखों में बहते आंसूओं के साथ संदीप की माँ खड़ी होती है और अंदर जाने लगती है। राकेश मूकबधिर खड़ा हो कर उन्हें जाते हुए एक टक देख रहा है। उसकी आँखों से आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे हैं।
प्रसिद्ध शायर राणा ने कहा है- वो सारे गुनाहों को धो देती है, माँ जब बहुत गुस्से में हो तो रो देती है।
 लेकिन उनकी आँसू की किसको परवाह? 
दोस्तों! यह सिर्फ एक संदीप की माँ की कहानी नहीं है। बल्कि संदीप जैसे सैकड़ों लोग ऐसे हैं जो माँ की ममता को, प्यार को, दुलार को संभाल कर नहीं रख पाते हैं। और संदीप की माँ जैसी हज़ारों मायें हैं, जो कई वर्षों से वृद्धाश्रम में  अपने बेटे का इंतज़ार कर रही हैं। आँखें धुंधली हो चुकी हैं। हाथ कांप रहे हैं। शरीर तक चुका है। लेकिन फिर भी उनको उम्मीद है कि उनका बेटा एक दिन ज़रूर आएगा।
Conclusion
आख़िर क्यों, दोस्तों? क्यों हम अपनी माता- पिता के साथ ऐसा करते हैं। जब हमारी माँ के पास कुछ नहीं था, फिर भी हमारे लिए बहुत कुछ था। और आज हमारे पास सब कुछ भी तो माँ के लिए कुछ नहीं है।
आख़िर क्यों? इन्हीं सवालों के साथ आपको यही छोड़े जाता हूँ और मिलता हूँ ज़ल्दी ही एक नए विषय के साथ। 
कैसी लगी आपको Hindi Story Of Mother and son आप ज़रूर बताईये और जुड़े रहिये आप मेरे ब्लॉग Silsila Zindagi Ka के साथ।


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