Life Poem/Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao ज़िन्दगी कभी मेरे घर आओ इंतज़ार करता हूँ रोज़ तुम्हारा। सूरज निकलने...
Life Poem/Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao
Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao
ज़िन्दगी कभी मेरे घर आओ
इंतज़ार करता हूँ रोज़ तुम्हारा।
सूरज निकलने से लेकर
शाम ढ़लने तक।
इंतज़ार करता हूँ रोज़ तुम्हारा।
Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao
आओ तुमसे मुलाक़ात करनी है
बहुत सारी तुमसे बात करनी है।
कुछ सुनना है और कुछ सुनाना है
राज़ ढ़ेरों इस दिल का बताना है।
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कुछ है जो तुमसे ही बता सकता हूँ
कुछ दर्द तुमसे ही जता सकता हूँ।
आओ मेरा नया विश्वास लेकर आओ
ज़िन्दगी, कभी नया आस लेकर आओ
शामिल होने आओ मेरी हर खुशी में
ज़िन्दगी आओ कभी मेरी ज़िंदगी में।
मेरी ज़िंदगी की उड़ान बनकर आओ
रोज़ मेरी तुम पहचान बनकर आओ।
ज़िन्दगी कभी मेरे घर आओ
इंतज़ार करता हूँ रोज़ तुम्हारा।
सूरज निकलने से लेकर
शाम ढ़लने तक।
इंतज़ार करता हूँ रोज़ तुम्हारा।
Zindagi Kabhi Mere Ghar Aao is A poem Which is Based On Life. So you can say it Life Poem.
Thanks For Stay connected with my Blog "Silsila zindagi Ka".
See you soon with a New Post:Bye-Bye:
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