गुरु जी! हर शब्द छोटा पड़ जाता है आपके सामने। आपके विचारों के सामने। मैं चाहता हूँ कि फिर से मैं उसी स्कूल में आऊं, जहाँ- आप ""भो...
गुरु जी! हर शब्द छोटा पड़ जाता है आपके सामने। आपके विचारों के सामने। मैं चाहता हूँ कि फिर से मैं उसी स्कूल में आऊं, जहाँ- आप ""भो-भो गर्दभह" बोला करते थे। मैं सोचता हूँ कि आप कभी आएं और पढ़ाएं वही पाठ संस्कृत का।
Silsila Zindagi Ka
आप में मैं कभी अल्फ़ाज़ नहीं लिख पाता क्योंकि आपकी महानता के सामने मेरे अल्फ़ाज़ छोटे पड़ जाते हैं। आज जब आपको देखा गंगा नदी के पुल पर, यानि अपने गाँव की बहती नदी के पुल पर तो मुझे बहुत खुशी हुई।
लगातार कई दिनों से शूटिंग में व्यस्त था। लेकिन जब अचानक आपको देखा तो बहुत अच्छा लगा। इसलिए शब्दों के ज़रिए ही आपको प्रणाम कर रहा हूँ और जो भी मेरे प्रतिदिन के हज़ारों Visitors हैं उन्हें पता चल सके कि मेरे गुरु जी आज भी वैसे ही विनम्र हैं, जैसा पहले थे।
गुरु जी संस्कृत पढ़ने का मन करता है आपसे- फिर एक बार। आप के हाथ से फिर एक बार छड़ी खाने का जी करता है- सिर्फ एक बार।
एक छोटे से गांव के स्कूल में अध्यापक रहते हुए। अपने विद्यार्थोयों को "भो-भो गर्दभ: " का पाठ पढ़ाते हुए, देश का नाम रौशन करते हुए दक्षिण अफ़्रिका तक आपकी यात्रा: यह साधारण बात नही है।
रात के 3 बजने वाले हैं, लेकिन जैसे ही आपकी तस्वीर देखा मैंने, सोचा कुछ लिखूँ। अल्फ़ाज़ नहीं आ रहे है। बस यही याद आ रहा है गुरु जी "भो-भो गर्दभ:"
लेकिन चलते-चलते गुरु जी आपके लिए दो पंक्तियाँ दिल से:
मेरी ख़्वाहिशें और मेरी अंदाज़ में आप आईये
मेरी गीत, मेरे संगीत और अल्फ़ाज़ में आप आइए।
मेरी ज़िन्दगी के एहतराम में भी आपका नाम है
और हर बार मेरी ज़िन्दगी के अंदाज़ में आप आइए।
मेरी हर ख़्वाहिशों की उड़ान मिली है आपसे
और मेरे ख़्वाबों के आग़ाज़ में आप आईये।
मेरी प्रीत में, मेरे गीत में और मेरे संगीत में
और अपनी मोहब्बत का साज़ बनकर आईये।
हृदय से प्रणाम
गुरु जी (Pramod Pandey Ji)
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