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Dashrath Manjhi: जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं

आज सुबह एक फ़िल्म देख रहा था "मांझी द माउंटेन मैन" ( Manjhi The Mountain Man ). पूरी फिल्म ही हक़ीक़त से भरी है और नई प्रेरणा देती ...

आज सुबह एक फ़िल्म देख रहा था "मांझी द माउंटेन मैन" (Manjhi The Mountain Man). पूरी फिल्म ही हक़ीक़त से भरी है और नई प्रेरणा देती है। शायद इंसान सुनने के बाद इसको पूरी तरह समझ ले तो उसके जीवन की एक नई यात्रा शुरू हो सकती है। 
Dashrath Manjhi: जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं

Manjhi The Mountain Man Film का सबसे सुपरहिट डायलाग- "जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं"। (Dialogue Of Manjhi The Mountain Man Film- Jab Tak Todenge Nahi, Tab Tak Chhodenge Nahi".
एक दूसरा सीन इस फ़िल्म का जो हौसला दे जाता है- एक पत्रकार जो कि दशरथ मांझी का किरदार अदा कर रहे नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी (Nawazuddin Siddiqi in Manjhi The Mountain Man) के पास आता है तो दशरथ मांझी उनसे कहते हैं- तुम अपना अखबार क्यों नहीं शुरू करते? तो वह पत्रकार कहता है- अपना अखबार शुरू करना बहुत मुश्किल काम है। तो दशरथ मांझी कहते हैं- "पहाड़ तोड़ने से भी ज़्यादा मुश्किल है"?

दोस्तों! एक इंसान अपना पूरा जीवन पहाड़ तोड़ने में लड़ा दिया। और जज़्बा देखिये, उस पहाड़ के बीचों-बीच रास्ता निकाल दिया।

लेकिन हम जब किसी काम को करते हैं तो हमारे दिमाग में कई नकारात्मक ख्याल आने लगते हैं। हो पायेगा या नहीं? कर पाएंगे या नहीं? कर तो रहे हैं लेकिन होगा या नहीं? अगर नहीं हो पाया तो लोग क्या कहेंगे?

दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi Life Story) की तरह अगर हमारे भी इरादे मज़बूत हो जाएं तो निश्चित ही हम भी पहाड़ को काटना शुरू कर देंगे और एक बार तो ज़रूर बोलेंगे- "जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं"।

आइये एक हौसला अपने अंदर जगाते हैं और अपने जज़्बे से एक नया इतिहास बनाते हैं। वही जुनून रखते हैं जो दशरथ मांझी का था और उसी बुलन्दी के साथ कहते हैं" जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं"।

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