Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो
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Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो

 

डरता हूँ, मेरा गाँव (My Village) कहीं शहर ना हो जाए| खेत और खालिहानों में जहाँ फसलें लहलहाती हैं वहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें ना झांकने लगें| पगडंडियाँ कहीं लम्बी-चौड़ी सड़कें ना बन जाएँ| भाषा की मिठास में नए दौर की गूँज समाकर कर्कस ना बन जाए|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


डर लगता है संस्कारों की चादर में लिपट कर रहने वाले ग्रामीण युवा (Villagers) डिजिटल क्रान्ति (Digital Era) की बाढ़ में इस क़दर ना बह जाएँ कि उनकी नज़र में मान-मर्यादा और अपनी संस्कृति (Village Culture) धुंधली नज़र आने लगे|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


दूर जाना अच्छी बात है,पर बहुत दूर जाना ठीक नहीं| क्यूंकि कुछ रास्तों की मंजिलें नहीं होतीं| जाना वहीं तक चाहिए, जहाँ से हम देर-सवेर अपने आशियाने में लौट आयें|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


खैर ज़रा गाँव की तरफ लौटें| लॉकडाउन लगा था| हिन्दुस्तान की बड़ी-बड़ी इमारतों में सन्नाटा था| शहर की लम्बी-चौड़ी सड़कें सो रहीं थीं| इंसान क्या, परिंदे भी पर नहीं मार रहे थें|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


तब कुछ थके, लड़खड़ाते और गिरते कदमों की ज़िन्दगी अपनी वास्तविक ज़िन्दगी की तलाश में ज़िन्दगी जीने के लिए गाँव की ओर लौट रही थी| सड़कों पर चलती हुयी हर ज़िन्दगी शायद यही कह रही थी- बस एक बार किसी तरह गाँव पहुँच जाएँ, फिर ज़िन्दगी मिल जायेगी|

यकीन मानिए, तब एहसास हो रहा था कि क्या है गाँव? तब यह ख्याल आ रहा था- गाँव में ही छाँव है| तब हम यही सोच रहे थे- गाँव है ना अपना, फिर कोई बात नहीं- थोड़े में ही ज्यादा दिनों तक जी लेंगे|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


यकीनन, जो गाँव है ना उसका शहर (Village VS City) मुकाबला नहीं कर सकता| दिन लम्बे, रातें लम्बी, उम्र उम्र से भी बड़ी, सूर्योदय (Sunrise in village), सूर्यास्त (Sunset in village), लहलहाते खेत (Village Agriculture), सूखे मगर ताजगी भरे खलिहान (Gaon khalihan), खेतों में चलते ट्रैक्टर (Tractor In field), बोरिंग से निकलती पानी की धार, दांत साफ करने के लिए दातुन, बिना मोटरगार्ड की साइकिल, बूढ़े दादा की गाली, मंदिर पर जुटान, एक से बढ़कर एक पकवान, सडक किनारे बैठक, सुबह-शाम खुले मैदान में दौड़ और कसरत, मक्का का भात, गुड़ की भेली, चीनी का शरबत, बारात का लवंडा नाच, रात का ऑर्केस्ट्रा, पांत का भोज, पत्तई का पत्तल, दो पैरों में अलग-अलग फीता लगा चप्पल, माथे की पगड़ी----कितना कुछ है गाँव (Village Imaegs) में|

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पर क्या आज के जेनरेशन को इन सब पर गर्व होता है? शायद नहीं...क्यूंकि आज के युवा खुद को शहरी कहना पसंद करते हैं| थोड़ा स्टैण्डर्ड बनने की चाह में अपनी भाषा से नाता तोड़ते नज़र आते हैं| कुछ गाँव से जाते हैं तो कई वर्षों बाद गाँव की दहलीज़ पर दस्तक देते हैं|  

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


पर एक बात समझ लीजिये ज़नाब! जब तक गाँव है, तब तक सर पर छांव है| इसीलिए गाँव में गाँव को ही रहने दिया जाए तो बेहतर है|

विकास (Village Development) हो पर विनाश ना हो, नया दौर हो पर कुछ और ना हो, तकनीकी क्रान्ति हो पर अशांति ना हो, नए रंग हों पर इंसान का जीवन बेढंग ना हो- यही प्रयास और विश्वास के साथ हमें गाँव को गाँव बनाए रखना है|

Village VS City: गाँव को गाँव रहने दो, इसे शहर ना बनने दो


यही तो वह ज़मीन है जहाँ सुकून की सांस कुछ दिनों तक हम ले पाते हैं| इसकी आबो-हवा में कुछ तो बात है कि बहुत थोड़े में बहुत ज़्यादा का मज़ा आता है, इसीलिये तो गाँव आज भी सबको भाता है|

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