Silsila Zindagi Ka हर रोज़ आपके लिए कुछ ना कुछ नया लाने का प्रयास करता है। शहरी चकाचौध की महक हो या गाँव की माटी की खुशबू "सिलसिला ज़िंदग...
Silsila Zindagi Ka हर रोज़ आपके लिए कुछ ना कुछ नया लाने का प्रयास करता है। शहरी चकाचौध की महक हो या गाँव की माटी की खुशबू "सिलसिला ज़िंदगी का" आप सभी तक इसी महक और खुशबू के साथ पहुँच रहा है और जिन तक नहीं पहुंच पाया है उन तक पहुंचेगा।
मैं गाँव में बदलाव की क्रान्ति देख रहा हूँ, जहाँ पहले बहुत शान्ति थी अब अशांति देख रहा हूँ.
क्योंकि यह सच है कि हमारा गाँव अब बदल (Changing India, Changing Village) रहा है. यह बदलाव महज़ एक बदलाव ही नहीं, बल्कि एक ऐसा घाव है जिसको ना तो कोई भर सकता है और ना इसका दर्द कोई कम कर सकता है.
हमारे गाँव के एक बाबा पहले कहते थे- "गाँव है तो सर पर छांव है"
तब मुझे यह बात समझ नहीं आती थी. क्योंकि मुम्बई जैसे शहर (Mumbai City) में रहते हुए आप पर कही ना कही शहरी रंग तो चढ़ ही जाता है और यही रंग तो इंसान की आँखों पर पर्दा डालता है.
लेकिन एक दिन जब पर्दा खुलता है तो यही मुंह से निकलता है- सचमुच "गाँव है तो सर पर छांव है"
याद कीजिये जब देश में Lockdown (Village images Lockdown) लगा था. वक़्त थम गया था. आँखें नम गई थीं. तब कुछ लडखडाते कदम अपने कन्धों पर बोझ उठाये चल पड़े थे गाँव की ओर. जो था, जहाँ था, जैसे था...बस वह गाँव पहुँच जाना चाहता था. क्योंकि सभी को मालूम था- एक बार गाँव पहुँच गये तो फिर सब ठीक हो जायेगा.
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