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आदित्य अश्क़ की कलम से कुछ पंक्तियाँ

आज फिर तेरा दीदार हुआ
आज फिर तेरी आँखों में काजल था
आज फिर तेरी यादें तड़पाएंगीं मुझे
आज फिर मुझे मरना पडेगा
कितना अजीब है ये दिल
किसी को अपना सब कुछ सौंप देता है
वगैर ये परवाह किये कि
छीन लेगी ये सुकूं भी जो हासिल है
तोड़ देगी दिल कई टुकड़ों में
जीने की चाह लिए रोज़ मरना पड़ेगा
अगर मोहब्बत दर्द की बुनियाद है
तो मेरा ग़म इस पे खड़ी हवेली है
हमारी तमाम आंसू बेबसी कैद है इसमें
दुनिया समझती है हमारी शोहरत हो गयी
लेकिन सच तो बस इतना है
इस बड़ी हवेली की बिस्तर पर
तुम्हारी यादों के चादर ओढ़े हुए
रोज़ एक बार मरता हूँ.
"आदित्य कुमार अश्क़"

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