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Story- एक किन्नर की ज़िंदगी और एक सच्ची Story, ज़रूर पढ़िए

Silsila Zindagi Ka यह एक Real Story है. एक किन्नर की जिसे हम Hijda (हिजड़ा कहते hain) उससे एक दिन मुलाक़ात हुई। किन्नर था वो। मै...

Silsila Zindagi Ka

यह एक Real Story है. एक किन्नर की जिसे हम Hijda (हिजड़ा कहते hain)


उससे एक दिन मुलाक़ात हुई। किन्नर था वो। मैंने उससे उसका नाम पूछा और उसने अपना नाम "हेमा" बताया। मैंने उससे पूछा कैसे हुआ ये सब? कैसे बने तुम किन्नर? तो उसने मेरी तरफ एक अज़ीब निग़ाह से देखा और कहा- कैसे बने मतलब? वो जो ऊपर वाला बना कर भेजा मैं वही हूँ। लेकिन बहुत दर्द भरा जीवन है यह। ना मर सकती हूँ, ना जी सकती हूँ। यह जीवन भी कोई जीवन है? सभी घृणा की दृष्टि से देखते हैं। कहीं से गुज़रो तो कहते हैं- हिजड़ा जा रहा है।  

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मैंने पूछा- तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ था? तुम्हारे माँ-बाप। मेरा मतलब तुम्हारा background? 

उसने एक लंबी सांस लिया और उदास हो कर अपनी Story  बताने लगी- ये तो नहीं बता सकती कि मैं कहाँ से हूँ और बताना भी नहीं चाहती। हाँ, इतना मुझे याद है कि मेरे माँ-बाप को कोई संतान नहीं हो रहा था। उनकी शादी के 30 साल के बाद मैं पैदा हुई। घर में पहली संतान आई है, यह जान कर सभी बहुत खुश हुए। समय गुज़रता गया। जब मैं 4-5 साल की हुई तो मेरे घर में काम करने वाली बाई को मालूम चला कि मैं लड़की नहीं, एक हिजड़ा हूँ। उसने मेरे माँ-बाप को बताया। मेरे माँ-बाप ने जब सुना तो उनके होश उड़ गए। फिर भी माँ तो माँ होती है। 

Finally, मेरे माँ-बाप ने निर्णय लिया कि हम
अपनी संतान को पालेंगे-पोसेंगे। उस समय मैं समझ नहीं पाई थी कि हिजड़ा क्या है? यह शब्द मेरे लिए नया था। बिल्कुल नया।

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मेरे माँ-बाप मुझे बहुत प्यार करते थे। बेशक़, पहले से ज़्यादा। हालांकि मेरे माँ-बाप को इस बात का डर था कि कहीं मोहल्ले में हल्ला ना हो जाये कि मैं किन्नर हूँ, इसलिए उन्होंने बाई को समझा दिया था कि मोहल्ले में किसी को न बताये कि मैं किन्नर हूँ। इसके बदले मेरे माता-पिता उसे एक्स्ट्रा पैसे देते थे।

समय गुज़रता गया और देखते-देखते मेरी उम्र 15 साल की हो गई और यहीं से शुरू हुई मेरी Story, लड़की से किन्नर बनने की। 

मेरी आवाज़ बदलने लगी। मेरा चाल-ढ़ाल बदलने लगा। मैं खुद हो परेशान हो उठी कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है? और क्यों हो रहा है? और क्या मैं सचमुच किन्नर हूँ?
कहते हैं कि सच्चाई बहुत दिनों तक छुप नहीं सकती। एक दिन मोहल्ले में एक लड़के के साथ मेरा झगड़ा हुआ। काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। और गुस्से में automatic एक किन्नर की तरह तालियाँ पीट-पीट कर उस लड़के को गाली देने लगी। और सब देख कर दंग हो गए और यहाँ पर राज खुल गया कि मैं एक किन्नर हूँ।

मोहल्ले में मेरे माँ-बाप का चलना मुश्किल हो गया। इधर मेरे में भी बहुत बदलाव आने शुरू हो गए। जैसे कि मुझे लड़कियों के costume पसंद आ रहे थे। मैं कभी माँ की साड़ी पहन लेती थी। कभी मुझे समीज सलवार पहनने का मन करता था। कभी लिपिस्टिक और चूड़ियां पहन लेती थी। अब मुझे भी विश्वास हो चुका था कि मैं ना तो मर्द ना हूँ, ना ही औरत.....मैं एक किन्नर हूँ।
थोड़े दिनों बाद ही मेरे घर पर एक किन्नर समुदाय से कुछ किन्नर पहुंचे और मेरे माँ-बाप से मुझे मांगने लगे यह कह कर कि आपकी संतान आपका समाज का नहीं है। इसका समाज अलग है और हम इसे अपनी community में ले कर जाएंगे।


मेरे माँ-बाप मुझे जाने नकिहीं देना चाहते थे, लेकिन मैं जाने के लिए तैयार हो गई, क्योंकि मुझसे अपने माँ-बाप की बेइज़्ज़ती और सहन होती थी। मेरे माता-पिता की आंख में आंसू थे और जाते वक़्त उनसे मैंने वादा किया कि मैं उनकी संतान हूँ और हमेशा रहूंगी। उनसे हमेशा मिलने आया करूँगी।
इतना कहते-कहते हेमा की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो सिसकते हुए कहती है- आज 10 साल हो गए लेकिन यहाँ आने के बाद मुझे कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि आने माँ-बाप से मिलने जाऊं। क्योंकि ये ज़िन्दगी नरक की ज़िन्दगी है और मैं सोचती हूँ कि अब कौन सा चेहरा लेकर उनके पास जाऊं....? क्योंकि मुझे खुद से और खुद की ज़िन्दगी से बहुत घिन होती है। लेकिन उनकी बहुत याद आती है। बचपन में ही उन्हें पता चल गया था कि मैं किन्नर हूँ, फिर भी उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया और उसके बाद उतना प्यार कभी किसी ने नहीं..........?

कहते-कहते हेमा फफक कर रो पड़ती है। मेरी आँखों में आंसू आ गए थे। मैंने हेमा के कंधे पर हाथ रखा  और सांत्वना देते हुए कहा- " हेमा, जो तक़दीर में लिखा होता है, वही होता है और वही मिलता है। शायद भगवान को यही मंज़ूर था। पर तुम बहुत खुशनसीब हो कि तुम्हारे माँ-बाप ने सच जानने के बाद भी इतना प्यार दिया था और बहुत शाहसी भी हो कि अपने माँ-बाप की इज़्ज़त के लिए तुमने अपना रास्ता चुना"।


हेमा अपने आंख के आंसुओं को पोछते हुए कहती है- घिन्न आता है मुझे इस समाज पर और समाज के लोगों पर। हम किन्नर हैं, मगर हम भी तो किसी के संतान हैं। हिजड़ा से नफ़रत है लेकिन हिजड़े का आशीर्वाद लेने के लिए लोग दौड़े चले आते हैं। हम भगवान से यही दुआ करते हैं कि कभी किसी को हिजड़ा मत बनाना। क्योंकि यह ज़िन्दगी बहुत दर्द देती है।  खैर जो भी है, जीना तो पड़ता है और जीयेंगे भी। पहली बार अपनी कहानी किसी को बताई हूँ, अच्छा लगा। थोड़ा जी हल्का हो गया। बहुत दिन से अच्छे से रो भी नहीं पाई थी। लेकिन आज.....!!


फिर अचानक हेमा वहाँ से जाते हुए कहती है- मुझे ज़रूरी काम है, जाना होगा और bye कह कर वहां से चली जाती है।

मैं वही खड़ा स्तब्ध और ख़ामोश हेमा को जाते हुए देख था। उसकी कहानी, उसकी जिंदगी का सफ़र, उसकी आँखों के आँसू अभी तक मुझे कचोट रहे थे। 
लेकिन हेमा की यह दर्द भरी Story मुझे हज़ारों सवाल पूछ रहे थें, जिसका ज़वाब मेरे पास नहीं था।

CONCLUSION

दोस्तों! यह सिर्फ एक हेमा की Story नहीं है, ऐसी हज़ारों हेमा की कई कहानियां हैं, जो हमें सोचने पाए मज़बूर करती हैं कि क्या किन्नर बुरे होते हैं? क्या उन्हें समाज में अच्छी ज़िन्दगी जीने का कोई हक़ नहीं? आख़िर क्यों? सवाल आप सब के लिए है। 
ख़ैर, मैं हेमा के लिए यही दुआ करती हूँ कि वो जिस परिस्थिति में है, जहाँ भी है उसका "सिलसिला ज़िन्दगी का" चलता रहे और वो अपनी दुनिया में ही हमेशा मुस्कुराती रहे।

मिलते हैं दोस्तों ज़ल्दी ही एक नए पोस्ट के साथ। तब तक के लिए Bye-Bye.

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