काश! ये ज़िन्दगी बेवफ़ा हो जाती

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काश! ये ज़िन्दगी बेवफ़ा हो जाती


काश! कि ये ज़िन्दगी बेवफ़ा हो जाती
मैं मनाता इसे और ये ख़फ़ा हो  जाती

ये मेरे सीने में धड़कन बनकर रह जाती
जो मैं न कहता मेरी ज़िंदगी कह  जाती

करता मैं कोई गुस्ताख़ी तो सताती मुझे
मैं भी कभी रुठ जाता तो  मनाती  मुझे

मैं भी इसे प्यार देता ये भी मुझे प्यार करती
मैं इसपे ऐतबार और ये  मेरा ऐतबार करती

मेरी ग़ज़ल, मेरे गीत में आती अल्फ़ाज़ बनकर
मेरी ज़िंदगी में आती मेरे जीने का अंदाज़ बनकर

पर हक़ीक़त तो ये ना मेरी थी, ना मेरी अब है
ज़िन्दगी को भी पता नहीं ये किसकी कब है?

मेरी हर दुआ भी बद्दुआ हो जाती
काश! कि ये ज़िन्दगी बेवफ़ा हो जाती
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