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मर्द तो होते ही हैं नामर्द

नया-नया था शहर में नई-नई आदतों से हो रहा था रु-ब-रु । और इस शहर में मेरी पहली कहानी शुरू हो चुकी थी । गल्ली के इस तरफ मेरा घर और...




नया-नया था शहर में
नई-नई आदतों से हो रहा था रु-ब-रु ।
और इस शहर में
मेरी पहली कहानी शुरू हो चुकी थी ।

गल्ली के इस तरफ मेरा घर
और दुसरी तरफ उसका ।
एक दिन मेरे घर की खिड़की से
वो मुझे दिखी।
मासूम चेहरा, पर उदास, निराश ।
उसने भी मुझे देखा
और नज़रें झुका ली।
फिर रोज़ उसको देखने का
सिलसिला शुरू हो गया ।
वो भी मुझे देखती थी और मैं भी उसे।

वक़्त गुज़रा और देखते-देखते
हम दोनों की दोस्ती हो चुकी थी
और न जाने कब यह दोस्ती
प्यार में बदल चुकी थी।
एक दिन उसने अपनी बीती कहानी बताई।
किस तरह उसने किसी से प्यार किया था
और फिर शादी।
लेकिन बीच सफ़र में ही वो उसे धोखा दे गया।
सुनकर मुझे बड़ा दुःख हुआ
और मैंने गुस्से में कहा
ये मर्द बड़े बेवफ़ा होते हैं।

एक दिन शहर में बारिश हो रही थी
मैं अपने घर की खिड़की पर आया।
तभी वो भी नज़र आई।
बिल्कुल उदास और उसकी आंखें नम थीं
मैंने पूछा क्या हुआ?
उसने कांपती आवाज़ में कहा
तुम मुझसे शादी करोगे?
यह सुनते ही मैं घबरा गया
और मैंने कहा, मेरे घर की कुछ बंदिशें हैं।
तो उसने चिल्लाते हुए कहा
प्यार करते समय तुम्हें तुम्हारे
परिवार की बंदिशें तज़ार क्यों नहीं आई?
और उस दिन तो तुम ख़ुद ही मर्दों को
बुरा-भला कह रहे थे।
और आज तुमने अपनी भी मर्दानगी दिखा दी।
मैं जानती हूँ
"मर्द तो होते ही हैं नामर्द"
उसने खिड़की को झट से बंद कर लिया।
मैं खड़ा ख़ामोश बंद खिड़की को
देखे जा रहा था
बारिश और तज हो चुकी थी।
और मुझे ऐसा लगा, वो बारिश की बूंदें
मुझसे चिल्लाकर कह रही थी
"मर्द तो होते ही हैं नामर्द"।

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