SILSILA ZINDAGI KA
A HEARTTOUCHING GHAZAL
कभी रूह तक उतर जाती है ग़ज़ल
कभी लब पर बिखर जाती है ग़ज़ल
कभी मुस्कुराती है बेवज़ह हर बात पर
कभी दर्द बन कर ठहर जाती है ग़ज़ल
कभी हर सपने को बिखेर देती है यूँ ही
कभी बन कर ज़िन्दगी संवर जाती है ग़ज़ल
ना इसका कोई ठौर है ना कोई ठिकाना है
जाने कब और किस पहर आती है ग़ज़ल
किसी के दिल को देती है सुकून बहुत ये
किसी को बेक़रार कर जाती है ग़ज़ल
किसी को गुदगुदाती है और हँसाती है
किसी की आँखों को भर जाती है ग़ज़ल
किसी महफ़िल को कर जाती है रौनक़ ये
कहीं बेवक़्त क़हर ढ़ा जाती है ग़ज़ल
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