Iss Duniya ko Chhod Gai Budhiya कई वर्षों से पुरानी पड़ी झोपड़ी में रहती थी वो बुढ़िया। जिसके चेहरे पर पड़ गई थी हज़ारों झुर्रियां। ...
Iss Duniya ko Chhod Gai Budhiya
कई वर्षों से पुरानी पड़ी झोपड़ी में
रहती थी वो बुढ़िया।
जिसके चेहरे पर पड़ गई थी
हज़ारों झुर्रियां।
गुज़रता था कभी उस गल्ली से
देखती थी वो बुढ़िया।
सिर्फ मुस्कुराकर देखता था उसे
और वो आशीर्वाद देती थी बुढ़िया।
कुछ कह नहीं पाती थी ज़ुबान से
पर उसके चहेरे की झुर्रियों पर
सदियों की कहानी नज़र आती थी।
उसकी मुस्कान में झलकता था
वो बीता हुआ कल।
जिसमें ज़िन्दगी थी, एक सुंदर ज़िन्दगी
जो शायद ना अब है
ना कभी होगी।
ना कभी अब नज़र आएगी।
क्योंकि कल वो बुढ़िया कह गई
इस दुनिया को अलविदा।
और वो साथ ले कर चली गई
सदियों की कहानी।
और उस कल को लेकर चली गई
जो अब कभी नहीं आएगा।
उसकी पुरानी मड़ैया रो रही थी
और बोल रही थी।
लौट आ फिर से ओ बुढ़िया!!
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