डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है- नूतन फारिया
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डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है- नूतन फारिया

 Welcome To Blog SILSILA ZINDAGI KA.

और हम उनका भी स्वागत करते हैं तह-ए-दिल से जिनकी कलम जादू है, जिनके हर अलफ़ाज़ में एक दर्द भरी आवाज़ में, जिनके हर्फ़ में कुछ अलग बात है, जिनके शब्द में खनक है, जिनकी लफ़्ज़ों में जज़्बात है.  ref="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiirJnOdZKMlaVfTs85s190JwCmF_A39bv4R2-sA6DRipLiN65CIyK81MliFjqCn3HNf7_410ZE4ftP43bufRyJVjX9qtXxh9ba1haHaJkh6kENfX_C_ygOvYJPE0IHmZkrNiY1cY9VJbeCg2Tln6BCUR0DB5XQuth6OmT_GiiNHBlzNp1zS2ULJDfqcw=s1280" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">



इन्होंने जो भी लिखा और कहा दिल से. तो आज हम भी स्वागत कर रहे हैं नूतन फारिया का अपने ब्लॉग में, इनकी एक बेहद रचना (Hindi Poem) के साथ- डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है?


पास आने का डर या दूर जाने का डर है,

डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है?

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उलझो मत अपने ही सवालों के घेरे में तुम,

उलझोगे तो सुलझने में दिक्कत होगी,

अपने सवाल से डर या जवाब से डर है, 

डर है आखिर तो किस बात का डर है?


 भागोगे कब तक अपनी परछाइयों से तुम,

 साया है हम रहेंगे साथ सदा,

 खुद से डर या जमाने का डर है

 डर है आखिर तो किस बात का डर है?


 सच्चे हो अगर तो करो सच से सामना,

 अपनी आवाज बनो अपनी  आवाज सुनो,

 सच से डर या झूठ से डर है , 

 डर है आखिर तो किस बात का डर है?

डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है- नूतन फारिया


पास आने का डर या दूर जाने का डर है ,

डर है अगर ये तो आखिर किस बात का डर है?


दोस्तों! कैसी लगी आपको नूतन फारिया की यह रचना? हमें कमेंट्स में बताईये. नूतन फारिया की एक और सुन्दर रचना के साथ ज़ल्द ही मिलते हैं. जुड़े रहिये "सिलसिला ज़िंदगी का" (Silsilsa Zindagi Ka) के साथ.

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