21 Best Dialogues of Mahabharat|Bhishma Dialogue|Karna Dialogue महाभारत (Mahabharat War) जैसा कोई युद्ध ना हुआ। भीष्म पितामह जैसा कोई योद्...
21 Best Dialogues of Mahabharat|Bhishma Dialogue|Karna Dialogue
महाभारत (Mahabharat War) जैसा कोई युद्ध ना हुआ। भीष्म पितामह जैसा कोई योद्धा ना हुआ। अर्जुन जैसा धनुर्धर, कर्ण जैसा महारथी, युधिष्ठिर जैसा सत्यवादी, नकुल जैसा सुंदर, गुरु द्रोण जैसा पराक्रमी कोई और ना हुआ। और महाभारत में वासुदेव जैसा कोई सारथी आज तक ना हुआ।
Silsila Zindagi Ka आज आपके लिए लेकर आया है महाभारत
(BR Chopra Mahabharat Dialogues) के Bhishma Pitamah Dialogue|Guru Dron Dialogue|
Guru Kripacharya Dialogue|Duryodhan Dialogue|Angraj Karna Dialogue|Shri Krishna Dialogue|Arjun Dialogue जो आपके रोंगटे खड़े कर देंगे।
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गुरु द्रोणाचार्य:
ये कुरु परिवार की समस्या है अंगराज, इसमें ना तुम्हारा बोलना उचित है ना मेरा।
अंगराज कर्ण:
गुरु के इतिहास में आप जैसा गुरु तो कदाचित ही हो कोई और होगा, जो सदैव एक ही शिष्य के पक्ष में होता है और बाकी शिष्यों के विरुद्ध।
भीष्म पितामह:
हे अंगराज! यह ना भूलो कि शेष सब योद्धा तुम्हें केवल अर्धरथीसमझते हैं,किंतु मैं तुम्हें महारथी समझता हूं। किंतु जिस व्यक्ति से तुमने अभी-अभी असभ्य स्वर में असभ्य बात की है, तुम उसके धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के योग्य भी नहीं हो। आज पूरे संसार में गुरु परशुराम के अतिरिक्त ऐसा कोई भी नहीं जो इन से बात करने के भी योग्य हो।
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कुलगुरु कृपाचार्य:
अंगराज तुम जिस दिन सत्य का बाण सहना सीख जाओगे, महारथी बन जाओगे। आचार्य द्रोण ने ठीक ही कहा था यह कुरु परिवार की समस्या है। युवराज तुम्हें अंगराज तो बना सकते हैं, पर वह तुम्हें कुरुवंशी नहीं बना सकते हैं। ये क्रोध जो कोई भी वीर पीले अंगराज अमृत समान होता है, इसलिए वत्स दुर्योधन तुम भी गंगापुत्र से क्षमा मांगो।
भीष्म पितामह:
यह किस-किस अपराध के लिए क्षमा मांगेगा आचार्य? मैं तो उस दिन से डर रहा हूँ, जब इसे क्षमा करते-करते मेरी झोली रिक्त हो जाएगी।
दुर्योधन:
मैं क्षमा चाहता हूं पितामह किंतु मुझसे मेरे क्रोध का असुर शायद नहीं जाता विष्णु कहीं ऐसा ना हो जाए तो तुम यह देखो कि तुम अश्व रोहन करने के योग्य ही नहीं रहे मैं वह दिन देखने के लिए जीवित नहीं रहना चाहता पुत्र इसलिए मेरी बात मानो और सेना को हस्तिनापुर कोई और ले कर लौट चलो चलो चलो चलो चाहे युद्ध नहीं करना चाहिए पुत्र का अंतिम दान लगा था तो मैं वहां था पुत्र और तब यह नहीं है
भीष्म पितामह
अंगराज कर्ण निसंदेह वीर है परंतु अर्जुन फिर भी अर्जुन है। हस्तिनापुर की छाती उसके बाणों को नहीं झेल सकती वत्स!
अंगराज कर्ण
हस्तिनापुर की छाती और द्रोण शिष्य अर्जुन के बाणों के बीच यह परशुराम शिष्य कर्ण खड़ा होगा आदरणीय गंगापुत्र भीष्म।
गुरु द्रोणाचार्य
तुमने अभी अर्जुन के बाणों का स्वाद नहीं चखा है अंगराज!
अंगराज कर्ण
आप आचार्य हैं। आपको अहंकार शोभा नहीं देता। परंतु आप प्रदर्शनी चाहते हैं, तो मैं महाराज के चरणों में राजमुकुटों का ढेर लगा सकता हूँ। और इसके लिए मुझे दिवायास्त्रों की आवश्यकता भी नहीं। वीर युद्ध करते हैं आचार्य तपस्या नहीं करते।
Duryodhan-Karna पहली मुलाकात
Dialogue Conversation Between Duryodhan-Karna
Duryodhan:
तुम्हारा नाम क्या है धनुर्धर?
Karna:
मेरा नाम Karna है।
Duryodhan
अंग देश का राज्य मेरे अधिकार में है कुलगुरु! और मैं आज अपने मित्र कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूँ। अंगराज कर्ण की जय!
Angraj Karna:
मित्र दुर्योधन! तुम्हारे इस अनुग्रह का ऋण, तो मैं अपने प्राणों से भी नहीं चुका सकता। आज से मेरा जीवन तुम्हारे लिए! मेरी निष्ठा तुम्हारे लिए! और मेरी मृत्यु भी तुम्हारे लिए होगी।
Bhishma Pitamah ने कर्ण को युद्ध में भाग लेने से क्यों रोका?
भीष्म पितामह
कोई वृक्ष स्वयं अपनी शाखाएं नहीं काटता पुत्र! तुम भी मुझे पांडवों से कम प्रिय नहीं हो। ऐसा नहीं होता तो अभी-अभी मेरे सामने जो असभ्यता का तुमने प्रदर्शन किया है, महादेव की सौगंध! उसके उपरांत मेरे सामने तुम अभी जीवित खड़े नहीं होते!
Duryodhan
क्या मैं एक प्रार्थना कर सकता हूँ पितामह?
Bhishma Pitamah
नहीं...!! जब तक इस सेना का प्रधान सेनापति मैं हूँ, अंगराज कर्ण इस युद्ध में भाग नहीं लेगा।
दुर्योधन
क्या मैं पूछ सकता हूँ पितामह? आप उस परशुराम शिष्य कर्ण को किस अपराध का दंड दे रहे हैं?
Bhishma Pitamah
उसने मेरे गुरु परशुराम का अपमान किया है। उनका कोई शिष्य असभ्य नही हो सकता पुत्र! और उसने भरी सभा में द्रौपदी को वेश्या कहकर उसका घोर अपमान किया है। जो नर, किसी नारी की मर्यादा की रक्षा ना कर सके। मेरे ध्वज तले युद्ध नहीं कर सकता पुत्र, नहीं कर सकता।
Angraj Karna
मेरी निष्ठा कुरुवंश के प्रति नहीं है। मेरी निष्ठा केवल महाराज और युवराज दुर्योधन के प्रति है।
Bhishma Pitamah
निष्ठा जैसे शुद्ध व पवित्र शब्द का यूँ दुरुपयोग ना करो अंगराज कर्ण। तुम तो जिस छतनार वृक्ष की छाया में बैठे हो, उसी की जड़ें काट रहे हो और अपनी इस अनिष्ठा को निष्ठा भी कहे जा रहे हो! ना भड़काओ अपने मित्र दुर्योधन को ना भड़काओ।
Bhishma Pitamah
दुर्योधन अधर्म का प्रतीक है कर्ण! अधर्म का प्रतीक! उसके विषैली छाया से निकलकर भाग जाओ, वरना जीवन भर पराजय का मुंह देखोगे। क्या तुमने ये नहीं देखा कि भारद्वाज पुत्र द्रोण और ये गंगा पुत्र भी उस विराट युद्ध में अकेले अर्जुन से हार गए थे। क्योंकि हम सब अधर्म का साथ दे रहे थे, अधर्म का।
Angraj Karna
गंगापुत्र भीष्म! आपने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है। किंतु फिर भी आप अपने प्रिय अर्जुन को मेरे बाणों से नहीं बचा पाएंगे।
Bhishma Pitamah
समय की बात मत कीजिये राजगुरु! क्योंकि समय केवल साक्षी होता है। केवल कर्म की बात कीजिये। क्योंकि कर्म हमारे स्वयं अपने होते हैं और हम अपने कर्मों के स्वयं उत्तरदायी भी होते हैं।
Bhishma Pitamah
तुम्हारा स्वागत है वासुदेव, तुम्हारा स्वागत है! तुमने मुझे मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी? हे गोविंद! स्वयं तुमने मुझे मारने आकर तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ा दिया है। देखो मैंने अपना धनुष भी रख दिया है और अपना बाण भी रख दिया है। रणभूमि में तुम्हारे हाथों मारे जाने से मेरा मान ही बढ़ेगा। है गिरधर! सुदर्शन चक्र को अपना दूत बनाकर मेरी मुक्ति ल संदेशा भेजो गिरधर, संदेशा भेजो!
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