ये जो परम्पराओं का सिलसिला है, हमें उपहार के तौर पर मिला है। कुछ बात है, कुछ हस्ती है इसमें, जिससे सहरा में भी फूल खिला है।। भोजपुरी भाषा ...
ये जो परम्पराओं का सिलसिला है,
हमें उपहार के तौर पर मिला है।
कुछ बात है, कुछ हस्ती है इसमें,
जिससे सहरा में भी फूल खिला है।।
भोजपुरी भाषा के उस क्षेत्र में "Silsila Zindagi Ka" आपका स्वागत करता है, जहाँ की "परोजन वाली बड़की पुड़ी बेजोड़ है"।
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2018 में मेरे घर में विवाह था। मेरे एक दोस्त मुंबई से (Mumbai Se Aaya Mera Dost) शादी अटेंड करने आये।
अचानक उनकी नज़र पड़ी हाथी कान वाली (Hathi Kaan Wali Puri) पुड़ी पर। सच बताऊं! उनको थोड़ी देर के लिए जैसे झटका सा लगा- ये क्या है? और मैंने जब इस पुड़ी की कहानी का विवरण अपने शब्दों में बताने लगा तो उनके मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकला- Wonderful!
सचमुच आश्चर्यजनक है। पर उनके लिए जिनसे ये सब दूर है। क्योंकि रोज देखते-देखते हमारी आदत सी बन गई है। लेकिन उनके लिए आज भी यह चौकाने वाली बात है।
इसमें कोई दो मत नहीं है की इन्हीं बड़की पुड़ियों से ही परोजन के भोजन की रौनक है। इन्हीं बड़की पुड़ियों से ही विवाह के मौसम में बहारों की कतार है। इन्हीं बड़की पुड़ियों से ही हर दिल में प्यार ही प्यार है। ये पुड़ियाँ महज़ पुड़ियाँ हीं नहीं, बल्कि हर परोजन की श्रृंगार हैं।
हाथी कान वाली पुड़िओं की खूबी क्या आप जानते हैं?
लमकी पुड़िओं में सिर्फ खूबियाँ ही खूबियाँ हैं। मुलायम, चमकीली, मज़ेदार, शानदार, बेमिसाल। दांत वाले भी खा सकते हैं और बिना दांत वालों के लिए भी परेशानी की बात खत्म।
मिजिये, थोड़ा और मुलायम कीजिये और मुंह में डाल लीजिये। फिर सही जगह पर लमकी पुड़ी अपने आप पहुँच जाएगी।
बड़की कड़ाही में, बड़की-बड़की बेल कर जब डाली जाती है, तब लगने लगता है की परोजन सर चढ़कर बोलने लगा है।
तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि किस तरह बड़की पुड़ियाँ बनाई और तली जा रही हैं। कवनो जोड़ है इनका?
केतना भी आइटम बना लीजिए, पर हाथी कान वाली पुड़ी परोजन में ना बेन तो मज़ा नहीं आता है।
एक जगह बफर सिस्टम लगा था। नौजवान और थोड़ा रंग जमाने वाले उम्र के लोग तरह-तरह के आइटम जैसे की- कचौड़ी, बुनिया, मटर पनीर, लिट्टी चोखा सब पर टूटे हुए थे।
पर एक बूढ़े बाबा प्लेट लेकर इधर से उधर घुरची काट रहे थे। सब आइटम को बड़ी बारीकी निगाह से देख रहे थे।
तभी मैंने बाबा से पूछ लिया- का ढूँढ़ रहे हैं बाबा? तब बाबा तुनकते हुए बोलते हैं- अरे लमकी पुड़ी नाहीं दिख रही है हो। तब से दिमाग खराब हुए है।
मैं बाबा को लमकी पुड़ी के पास लेकर गया और कहा ये लीजिये! बाबा ने जैसे ही बड़की पुड़ी देखा, टूट पड़े। और इतना प्रेम से बड़की पुड़ी खाये की मेरा दिल खुश हो गया।
पतई पर पतई बड़की पुड़ी खाने वालों के अंदाज़ को बयां करना बहुत मुश्किल है। पर इतना जरूर कहूंगा- बड़की पुड़ी के दीवाने, सबसे अलग है इनके कारनामे।
केतना भी शहर का बफर सिस्टम हो जाये! केतना भी आइटम बन जाये! केतना भी शानदार, मज़ेदार खाना बन जाये- एक पतई लमकी पुड़ी के सामने सब फीका है।
भोजपुर और बलिया (Lamki pudi in Bhojpur and Ballia) जिले में या यूं कहें की सभी भोजपुरी इलाकों में बड़कीf पुड़ी का क्रेज (craze of hathi kan pudi)है!
बेजोड़ है बड़की पुड़ी, बेमिसाल है बड़की पुड़ी
सबसे अलग, सबसे कमाल है बड़की पुड़ी!!
बड़की पुड़ी सिर्फ भोज की रौनक ही नहीं, परोजन का खाना ही नहीं, बल्कि यूं कहें की हमारी परंपरा है और हमारी पहचान है।
Conclusion
बड़की पुड़ी की मुलायमता, स्वाद, चटखारा, महक और मज़े के साथ "सिलसिला ज़िंदगी का" आपसे लेता है विदा। मिलते हैं जल्दी ही एक नए पोस्ट के साथ।
कैसा लगा आपको ये पोस्ट? हमें जरूर बताईये और पढ़ते रहिये हमारा blog- www.silsilazindagika.in.net
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