मेरे घर की दीवारें अब बूढ़ी हो चली हैं
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मेरे घर की दीवारें अब बूढ़ी हो चली हैं

मेरे घर की दीवारें शायद
अब बूढ़ी हो चली हैं।
इनमें अब सीलन
सी आने लगी हैं ।
इनका ज़र्रा-ज़र्रा अब
कांपने लगा है ।
मैंने इनकी दर्द भरी
आवाज़ को सुना है ।
महसूस किया है मैंने
इनकी हर तकलीफ़ को।
पत्थरों का बोझ ढ़ोते-ढ़ोते
अब थक सी गई हैं।
मेरे घर की दीवारें शायद
अब बूढ़ी हो चली हैं ।

इनकी लबों पे जो मुस्कान थी
वो गायब हो चुकी हैं ।
मैं लाख कोशिशें करता हूँ
की फिर से मुस्कुराएं ये ।
पर अफ़सोस, ऐसा नहीं
हो पाता है।
पहले गाती थीं, गुनगुनाती थीं
पर अब सिर्फ खामोश हैं ।
बिखरी हुई सी दिखती हैं।
उदास, निराश ।
एक दर्द लिए सीने में
कुछ देखती और सोचती
रहती हैं ।
धीरे-धीरे इनका वज़ूद
सिमटने लगा है ।
ऐसा लगता है ।
मेरे घर की दीवारें शायद
अब बूढ़ी हो चली हैं।

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