जब से गांव से शहर आये हैं ज़िन्दगी बहुत छोटी लगती है पनीर, मटर अब मज़ा नहीं देते कड़क अब रोटी लगती है सच ...
ज़िन्दगी बहुत छोटी लगती है
पनीर, मटर अब मज़ा नहीं देते
कड़क अब रोटी लगती है
सच पूछो तो गांव की
बात ही कुछ और है
वहां की शाम और रात की
वहां की शाम और रात की
बात ही कुछ और है
मैं हूँ गांव का और गांव से ही
शुरू हुई मेरी ज़िंदगानी है
मैं सुनाता हूँ आपको, जो मेरी
मैं सुनाता हूँ आपको, जो मेरी
और मेरे गांव की कहानी है
अभी तक याद है वो टूटा स्कूल
वो प्यारे से शिक्षक, अनुशासन और रूल
वो वर्षों पुराना उस पीपल की छांव
वो मिट्टी के घरौंदे वो कागज़ की नाव
वो लड़ना, झगड़ना, वो झूठी, सच्ची कसमें
ना रिश्ते, ना बंधन, ना बंदिश ना कसमें
वो लुक्काछीपी, छुतुडी, कब्बडी का खेल
वो लंबी कतारें, वो लंबी सी रेल
ना रिश्ते, ना बंधन, ना बंदिश ना कसमें
वो लुक्काछीपी, छुतुडी, कब्बडी का खेल
वो लंबी कतारें, वो लंबी सी रेल
वो हल, बैल, ट्रैक्टर, वो खेत, खलिहान
वो माथे पे पगड़ी, वो गांव का किसान
वो सरसो, खेसारी, वो चना का साग
वो आम, अमरूद के सुंदर से बाग
वो माथे पे पगड़ी, वो गांव का किसान
वो सरसो, खेसारी, वो चना का साग
वो आम, अमरूद के सुंदर से बाग
वो चैता, वो बिरहा, वो पूर्वी की तान
वो ढ़ोलक और नाल पर झाल की शान
वो फगुआ, दीवाली और छठ का त्योहार
वो मेल-मिलाप और बातें हज़ार
वो ढ़ोलक और नाल पर झाल की शान
वो फगुआ, दीवाली और छठ का त्योहार
वो मेल-मिलाप और बातें हज़ार
वो तिलक, बारात और डोमकच के रीत
वो पुड़ी, वो बुंदिया, वो लंबी सी पांत
वो बरी, फुलौरा, वो कढ़ी, वो भात
वो तिलवा, वो मेथी, वो पुडुकी, कसार
वो रिश्ते, वो नाते, वो तीज, त्योहार
वो टेंट, सामियाना, वो पर्दे की टीवी
वो स्टेज का नाच, वो मिथुन की मूवी
वो पतली सी पगडंडी और गंगा की धार
वो बाबा का मंदिर वो रेत का आरार
वो बाबा का मंदिर वो रेत का आरार
वो बाबा, वो चाचा, वो काका, वो भईया
वो जाड़े की रात, वो टूटी मडैया
धुप में भी रोज़ जहां लगती थी छाँव
ये है कहानी और ऐसा है मेरा गांव
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