(भारत के वीर सपूत और 1857 के क्रांतिकारी "मंगल पांडेय" को अपने ब्लॉग के ज़रिए, उनको एक कविता अर्पित कर रहा हूँ) सिंह सी जिस...
(भारत के वीर सपूत और 1857 के क्रांतिकारी "मंगल पांडेय" को अपने ब्लॉग के ज़रिए, उनको एक कविता अर्पित कर रहा हूँ)
सिंह सी जिसकी गर्जन, लोहे से जिसका तन था
निर्भीक, निडर ,अटल और अचल जिसका मन था
बाग़ी बलिया,उत्तर प्रदेश और भारत भूमि का ये शेर
अंग्रेज़ों को धूल चटाया, कर दिया था सबको ढ़ेर
1857 का भारत का वो प्रथम स्वाधीनता संग्राम
"मंगल पांडेय" का जिसमें आता है सर्व प्रथम नाम
ललकार कर गोरों को विद्रोह की चिंगारी भड़काई
सारे गोरे घबरा गयें और जान हथेली पर बन आई
कौन है, कहां से आया किसने भड़काई ये चिंगारी
तब भारत माता बोली ये है मंगल पांडेय क्रांतिकारी
देख के इस वीरता को भारत का अभिमान जगा
बच्चा-बच्चा, बुढ़ा-बुढ़ा, किसान और ज़वान जगा
बाग़ी बलिया का शेर जब मस्ती में हो के चूर चला
तब कहां टिक पाया था अंग्रेज़ों का मग़रूर भला
ललकार कर, दहाड़ कर गोलियों की बौछार किया
बैरक से अंग्रेज़ों को जो भागने पर लाचार किया
जान चली गई पर, गोरों के आगे ना कभी झुके
जहां गए गोरे भागे, देख उन्हें कभी ना रुके
इस वीर की वीरता को, इस वीर की कहानी को
भूल ना पायेगा ये वतन"मंगल पांडेय"बलिदानी को
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