युद्ध है समीप, अपने रक्त को उबाल दो

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युद्ध है समीप, अपने रक्त को उबाल दो

लेखक नलिन सौरभ की वीरता रस की एक बेहतरीन कविता- जो आपके दिल को छू जाएगी। ज़रूर पढ़िए ।


त्याग अपनी शैय्या , उठो शस्त्र को संभाल लो ...
शत्रु खड़ा है द्वार पे , अपने विकल्प तुम विचार लो...
मन में है कोई भय अगर इसी वक़्त तुम निकाल दो ..
युद्ध है समीप , अपने रक्त को उबाल दो।

आसमान को घेरे हैं बादल किसी कोहराम के ...
बीत चुके पल हैं अब शैय्या पर एहतराम के...
उठो और अपनी मातृभूमि का क़र्ज़ अब उतार दो....
युद्ध है समीप , अपने रक्त को उबाल दो ।।

मेवाड़ के शत्रु हैं विशाल भाँति किसी समूद्र के ...
तुम वीर भले चंद हो , अखंड हो , प्रचंड हो...
कूँच करो रणभूमि में , इस समुद्र को इक भूचाल दो ...
युद्ध है समीप , अपने रक्त को उबाल दो...।।

प्रश्न में वीरों की इस भूमि का अब सम्मान है ...
उठो और करो युद्ध , ये वीरता का इम्तिहान है ....
मेवाड़ की पावन भूमि का शत्रु को अब मिसाल दो ..
युद्ध है समीप , अपने रक्त को उबाल दो....!!

एक एक वीर तुम शहश्र के समान हो ....
मेवाड़ की मिट्टी के तुम घमंड हो अभिमान हो ....
उठो और वीरों की गाथा सुनाती इस ध्वज को तुम संभाल लो.....
युद्ध है समीप , अपने रक्त को उबाल दो..।।

#MewadKiDhartiKoShatShatNaman

दोस्तों!! कैसी लगी आपको ये कविता, हमें ज़रूर बताईये।

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