चाँद बहुत शरमाया है
https://www.amazon.in/amazonprime?&linkCode=ll2&tag=news0c0f-21&linkId=38309fc63d473e62650c06df2fe88330&language=en_IN&ref_=as_li_ss_tl

ADVERTISMENT

Editors Choice

3/recent/post-list

चाँद बहुत शरमाया है


बालों का गजरा गमक  उठा
माथे की बिंदिया चमक उठी
छा गया  वसन्त  पतझड़ में
ज़िस्म की खुश्बू महक उठी

कल रात को छत पर गोरी ने
अपने घूँघट को हटाया है।
देख के उसके रूप को
चाँद बहुत शरमाया है।

कुछ बात तो है इस गोरी के
मादकता   सी  आँखों   में।
आई है कहाँ से रुप की रानी
वो एक है करोड़ों लाखों में।।

किसी कवि की गहरी  सोच  है या
फिर है वो किसी शायर की ग़ज़ल।
या वो  किसी  रंगरेज़ की है रचना
या किसकी है वो कलम की कँवल।।



है हर अदा क़ातिलाना उसकी
मुस्कान  बहुत  ही निराली है।
है  उतरी  स्वर्ग  से परी  कोई
छाई हर  तरफ़  हरियाली  है।।

जाने कौन, इसे किस पल में
इतनी शिद्दत से बनाया है।
देख के उसके रूप को
चाँद बहुत शरमाया है।



Post a Comment

0 Comments