मैं भी तेरी याद में एक ताजमहल बनाऊँगा। सारे जहाँ में तेरे नाम का दिया मैं जलाऊंगा।। ऐ ख़्वाब-ए-मालिका ज़रा गौर कर के सुन ले।...
मैं भी तेरी याद में एक ताजमहल बनाऊँगा।
सारे जहाँ में तेरे नाम का दिया मैं जलाऊंगा।।
ऐ ख़्वाब-ए-मालिका ज़रा गौर कर के सुन ले।
मुहब्बत की आग से सारी नफ़रतें मिटाऊँगा।।
आ गया जो वक़्त कभी मेरे सिकंजे में।
उस पर भी अपनी चाहत का रंग छोड़ जाऊँगा।।
मत करो वार वारहा दिले द्वार पर।
आख़िर कब तलक मैं ये ज़ुर्म सह पाऊंगा।।
समझा था रहनुमा जिसे अपनी ज़िन्दगी का।
अश्क़ उनके जीते जी कैसे मैं बहाऊँगा।।
है बेताब दिल तो किस क़दर रोक लें।
मुज़रिम बन कर ख़ुद का मैं कैसे रह पाऊँगा।।
- राजेश पाण्डेय
तेरी यादो के संगमरमर से ख्वाबो का ताजमहल बनवाऊंगा,
ReplyDeleteउसमे अपनी एकतरफा बेपनाह मोहब्बत की कब्र खुदवाऊंगा
तुझे बेचैन कर कर के रात दिन ,
एक दिन मैं उस कब्र में दफन हो जाऊंगा