"सिलसिला ज़िंदगी का" मेरा उससे ही शुरू हुआ था. उसकी मोहब्बत से, उसकी शोख अदाओं से, उसकी मुस्कुराती लबों से, उसकी शर्माती निगाहों ...
"सिलसिला ज़िंदगी का" मेरा उससे ही शुरू हुआ था. उसकी मोहब्बत से, उसकी शोख अदाओं से, उसकी मुस्कुराती लबों से, उसकी शर्माती निगाहों से, उसके उड़ते आँचल से, उसकी आँखों के काजल से.
उसकी हर एक बात याद है. हर एक मुलाक़ात याद है. उसका हर बार का मिलना और बिछड़ना याद है. फिर मिलने का वादा करना और हँसते हुए कहना कि वादा तो टूट जाता है. मोहब्बत के लिबास में लिपटी और हज़ारों मोहब्बत के रंग लिए जब पास आती थी तो ऐसा लगता था, जैसे पतझड़ में बहार आ गयी हो.
एक दिन बारिश हो रही थी और उसने अपने हाथ को खिड़की से बाहर निकाल दिया था. शायद तब उसकी नाज़ुक सी हथेलियों को छू कर वो बारिश की बूंदे भी इतरा रही थी और वो मुस्कुरा रही थी. वो बारिश की बूँदें उससे अपनी आवाज़ में मानो यही कह रही थी- इस क़दर देखोगे निगाहों से तो जाने क्या से क्या हो जाएगा! मत छूना इन नाज़ुक हथेलियों से वर्ना पत्थर भी खुदा हो जाएगा.
वाक़ईज़ वो प्यार को वो परिभाषा थी जो दुनिया के किसी किताब में लिखी नहीं है. क्योंकि वो परिभाषा सिर्फ वो थी और वो ही रहेगी.
ताउम्र साथ निभाने का वादा तो कर ली थी. लेकिन कहते हैं न कि वक़्त सब कुछ बदल देता है और हुआ भी कुछ ऐसा. बातों का सिलसिला भी बंद और अचानक सब कुछ जैसे बदल गया. सब कुछ अचानक हुआ. उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं मिली.
निगाहें हर रोज़, सुबह से शाम तक वही उसका रास्ता देखा करती थी, जहां वो मिला करती थी. कई दिन बीते, कई महीने बीत गए....पर वो उन्हीं आई. हर रात सोने से पहले यही सोचता हूँ कि कल वो आएगी, ज़रूर आएगी. वही मुस्कान लिए, वही अदा लिए. वही चाहत और वही मोहब्बत लिए. मैं नहीं जानता कि ऐसा होगा या नहीं, लेकिन हाँ...मैं इतना ज़रूर कहता हूँ कि वो आएगी.
पर आज भी मैं यही सोचता हूँ कि आखिर वो क्यों बदल गयी..? वो बदल गयी या वक़्त...? " जो मेरे बगैर रह नहीं पाते थे, वो कैसे जुदा हो गए! वक़्त ने की बेवफाई, या वो बेवफा हो गए!!
आज भी हज़ारों सवाल उठते हैं, लेकिन जवाब एक भी नहीं.
खैर, वो तो चली गयी, लेकिन अपनी यादें मेरे पास छोड़ गयी. जो ताउम्र उसकी यादों को अपने दिल से मिटा नहीं सकता. और मिटाऊं भी क्यों....? "सिलसिला ज़िंदगी का" मेरा उसी से तो शुरू हुआ था. उसने ही तो बताया था मुझे प्यार क्या है...? उसने ही तो बताया था मुझे कि चाहत क्या है..? फिर उसको पल भर में भूल जाना आसान कैसे है...?
चलते-चलते मैं फिर एक बार यही कहूंगा कि वो एक दिन ज़रूर आएगी. मुझसे मिलने. फिर से वही प्यार जतायेगी. फिर से उसी तरह मुस्कुराएगी.
और न भी आये तो क्या...? मैं उसकी यादों के सहारे ही ज़िंदा रहूँगा. उसकी नाज़ुक हथेलियों की छुवन को हमेशा महसूस करता रहूँगा. वो है, आज भी है. मेरे आस-पास ही कहीं. और वो हमेशा रहेगी क्योंकि "मेरी यादों में अभी तक तैरते हैं उसके प्यार के हज़ारों रंग".