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ज़ख्मों को अश्क़ों से धो कर रोया

ज़ख्मों   को   अश्क़ों   से  धो   कर  रोया कभी  जुदा  तो  कभी  तेरा हो  कर रोया तो  कभी  सपनों  से  दूर   रह कर तड़पा कभी तुझे पाने...



ज़ख्मों   को   अश्क़ों   से  धो   कर  रोया
कभी  जुदा  तो  कभी  तेरा हो  कर रोया
तो  कभी  सपनों  से  दूर   रह कर तड़पा
कभी तुझे पाने का सपना सँजो कर रोया


कभी  तुझसे  प्यार  कर  के  रोया
कभी  तेरा  इंतज़ार   कर  के रोया
कभी तेरी बेवफ़ाई ने सितम किया
कभी तुझ पे  ऐतबार  कर के रोया



इन आँखों के आँसूओं का कोई पैमाना होता
अगर ज़ख्म  देने  वाला  कोई  बेगाना  होता
वो  मेरी  वफ़ा को  ज़रा  सा  भी समझ लेते
तो आज यूँ  न  तड़प  रहा  ये दीवाना  होता


वक़्त की  तरह  जब  वो  भी  बदल गए
हम  भी   सोचे  और  थोड़ा  सम्भल गए
हम  खड़े   हो  कर  मोड़  पर देखते  रहे
वो किसी ग़ैर के साथ वहां से निकल गए


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