अब हर घर से एक परशुराम निकलेगा

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अब हर घर से एक परशुराम निकलेगा



अब  देख  लेना हर  घर से एक  परशुराम  निकलेगा
बुराई  को  मिटाने फरसे को हाथों  में थाम निकलेगा

जब   निकलेगा   तो  भागने   का  रास्ता  न  मिलेगा
कौन  अपना है, कौन   पराया कोई वास्ता न मिलेगा

जब  वो  आएगा, तो  हर अन्याय  को मिटा  देगा वो
जिधर  से  गुज़रेगा  देखना,  अँधेरे को  हटा देगा  वो

हर   मोड़, हर    गल्ली, हर   चौबारे  पर  मिलेगा वो
मजधार   में    मिलेगा  और  किनारे  पर मिलेगा  वो

जो   तुम   चाहते  हो  मन  की  करना, होने  न  देगा
चाहे  कुछ  भी  हो  जाये, वो  तुम्हें कभी रोने न देगा

लाखों की भीड़ में भी  उसकी  अलग  पहचान  होगी
शेर की तरह दहाड़ेगा, मुश्किल में  तुम्हारी जान होगी

जंग   होगी  भीषण,  फिर  तुम  सोचना  क्या  करोगे
बच   नहीं    पाओगे  तुम  चाहे  लाखों   दुआ  करोगे

तुम  कौन  हो, तुम  क्या हो, हर चीज़  वो भुला  देगा
हर  ज़ुर्म को  अपने  क्रोध की आग  में वो जला देगा

अभी भी वक़्त है, मौका है, चाहो तो सम्भल जाओगे
वर्ना  नहीं  तो  फिर बच कर तुम नहीं निकल पाओगे

हर  बुराई  पर  अब  उसके फरसे का नाम निकलेगा
अब  देख  लेना हर  घर से एक  परशुराम  निकलेगा