ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ यादें हमेशा हमारे साथ परछाई बनकर चलती हैं, हमारी भी एक याद है-हमारे गाँव का पकवा स्कूल। और कौन भूल सकता है उस स्कूल पर वर्षों से अडिग खड़े उन दोनों पीपल के पेड़ों को जो आज भी उसी तरह लोगों को छाँव देते हैं।
जब हम छोटे थे, उस स्कूल के बड़े से फील्ड में सभी खेला करते थे। और उन दोनों पीपल के पेड़ों की छाँव में बैठकर हम सभी पढ़ाई किया करते थे। वो पीपल का छाँव ही तेज़ धूप से हमें बचाता था।
पकवा स्कूल से हम सभी का वर्षों का नाता है। दूर-दराज़ के गाँव से लड़के क्रिकेट का टूर्नामेंट खेलने आया करते थे और आज भी आते हैं। बेशक़ हमारा अब वहाँ पढ़ने का दौर चला गया और शायद खेलने का भी। लेकिन पकवा स्कूल से हमारा अटूट रिश्ता है और हमेशा रहेगा।
आज भी जब हम कभी गाँव जाते हैं और वहाँ से गुजरते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे पकवा स्कूल हमें देखकर मुस्कुरा रहा है, ख़ुश हो गया है और हमें बुला रहा है। और जब भी हम वहाँ से शहर के लिए निकलते हैं तो मैंने महसूस किया है, पकवा स्कूल कितना उदास हो जाता है? और हो भी क्यों न? हमारा बचपन इसी पकवा स्कूल पर दौड़ते हुए तो बीता है।
अभी भी पकवा स्कूल पर पढ़ाई होती है। अभी भी यहाँ टूर्नामेंट होता है। जाने कितने दौर यहाँ से पढ़-लिखकर, खेल-कूदकर बहुत आगे निकल गए। लेकिन पकवा स्कूल आज भी उसी तरह अडिग और अचल खड़ा है और शायद सदियों तक इसी तरह खड़ा रहेगा।
हमें प्यार है इस पकवा स्कूल से। हमें बहुत लगाव है इससे। यह हमेशा हमारी यादों के घरौंदे में चक्कर लगाता रहता है। जब भी कभी याद आती है इसकी, हम मुस्कुरा उठते हैं और हमारे मुंह से अनायास ही निकल पड़ता है। "ओह पकवा स्कूल"!!
हम इसी तरह पकवा स्कूल को हमेशा अडिग खड़ा देखते रहना चाहते हैं और जब भी गाँव जाएंगे, हर बार यहाँ जाना चाहते हैं। क्योंकि पकवा स्कूल ही तो है जो हमेशा कहता है "सिलसिला ज़िन्दगी का" तुम्हारा हमेशा आगे बढ़ता रहे।