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मिट्टी वाले दिये जलाना अबकी बार दिवाली में- चन्द्रशेखर गोस्वामी

सिलसिला ज़िन्दगी का मिट्टी वाले दिये जलाना अबकी बार दिवाली में POEM BY: CHANDRASHEKHAR GOSWAMI DIWALI POEM||HEART TOUCHING DIWALI PO...

सिलसिला ज़िन्दगी का

मिट्टी वाले दिये जलाना अबकी बार दिवाली में
POEM BY: CHANDRASHEKHAR GOSWAMI


DIWALI POEM||HEART TOUCHING DIWALI POEM
सन 2016 का दौर था। दिवाली आने वाली थी और उसी समय एक कविता सोशल मीडिया लार वायरल हो रही थी। FACEBOOK, WHATSAPP आदि पर यह कविता धड़ल्ले से शेयर की जा रही थी।
देखते-देखते यह कविता हर किसी की जुबां पर छप गई और एक दिन ऐसा भी आया जब हर जगह यह कविता अपनी छाप छोड़ गई।

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जी हाँ इस कविता का नाम है- "मिट्टी वाले दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में"। यह दिवाली के साथ-साथ राष्ट्र हित की भावना को भी व्यक्त करती है।
शायद अब आपको भी याद आ गई होगी यह खूबसूरत कविता। यह कविता देश के कोने-कोने तक पहुँची और लोगों को इस कविता ने संदेश दिया- "मिट्टी वाले दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में"।

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इस कविता के लेखक हैं "चन्द्रशेखर गोस्वामी जी"।  इस बेहद ही खुबसूरत रचना के लिए कई बड़े-बड़े मंचों पर सम्मानित किया गया। साथ ही इस रचना को कई टीवी चैनलों द्वारा वीडियो बना कर टेलीकास्ट किया गया। कई समाचारपत्रों द्वारा भी इस रचना को प्रकाशित किया गया।

फिर से 2018 की दिवाली आ रही है और इस दिवाली के अवसर पर "श्री चन्द्रशेखर गोस्वामी जी" की यह सुंदर रचना अपने ब्लॉग सिलसिला ज़िन्दगी के माध्यम से आप तक पहुंचा रहा हूँ।



राष्ट्रहित का गला घोंट कर
छेद न करना थाली में-2
मिट्टी वाले दीये जलाना 
अबकी बार दीवाली में-2

देश के धन को देश में रखना, 
नहीं बहाना नाली में-2
मिट्टी वाले दीये जलाना 
अबकी बार दीवाली में-2

बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दीये बिके बाजारों में।
छिपी है वैज्ञानिकता
अपने सभी तीज-त्योहारों में।।

चायनीज झालर से आकर्षित
कीट पतंगे आते हैं।
जबकि दीये में जलकर
बरसाती कीड़े मर जाते हैं।।

कार्तिक दीप-दान से बदले 
पितृ दोष खुशहाली में-2
मिट्टी वाले दिये जलाना
अबकी बाए दिवाली में-2

कार्तिक की अमावस वाली, 
रात न अबकी काली हो।
दीये बनाने वालों की भी
खुशियों भरी दीवाली हो। 

अपने देश का पैसा जाए,
अपने भाई की झोली में।
गया जो पैसा दुश्मन देश,
तो लगेगा राइफल की गोली में।

देश की सीमा रहे सुरक्षित
चूक न हो रखवाली में-2
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में-2

राष्ट्रहित का गला घोंट कर
छेद न करना थाली में-2
मिट्टी वाले दीये जलाना 
अबकी बार दीवाली में-2

दोस्तों!! ये थी दिल को छू लेने वाली चंद्रशेखर गोस्वामी जी की कविता "मिट्टी वाले दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में"।
कैसी लगी आपको यह रचना, हमें ज़रूर बताईये। फिर जल्दी ही मिलते हैं आपसे अगले पोस्ट में । आप इसी तरह जुड़े रहिये हमारे ब्लॉग "सिलसिला ज़िन्दगी का" 

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