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वो बोली, सुनो, कल फिर यही मिलना, बहुत मज़ा आया

SILSILA ZINDAGI KA A STORY BY: RAJ PATIL मुम्बई के मढ़ जेट्टी में शार्ट फ़िल्म की मेरी शूटिंग चल रही थी। तभी अचानक वो मेरे सामने...


SILSILA ZINDAGI KA

A STORY BY: RAJ PATIL

मुम्बई के मढ़ जेट्टी में शार्ट फ़िल्म की मेरी शूटिंग चल रही थी। तभी अचानक वो मेरे सामने आई। नज़रों से नज़रें टकराईं। मेरा दोस्त डायरेक्टर था, वहाँ आया और हम दोनों का परिचय कराते हुए कहा- Hi, She is Prema...And Prema this is Raj...Raj Patil...
वही एक छोटी सी और पहली मुलाकात थी। पूरे शूट के दौरान मेरी और प्रेमा की नजरें कई बार टकराईं और उसी शाम वहाँ से फ्री होते ही मैं इधर-उधर देखने लगा। प्रेमा मुझे कहीं नज़र नहीं आई। मेरी निगाहें उसको ढूंढ़ने लगी। मैंने मेकअप मैन से पूछा- Where is Prema? उसने कहा- मुझे नहीं पता।
मैं उसे ढूंढ़ ही रहा था कि उस पर नज़र पड़ी। वो अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ रही थी। मैं बस उसे देखता रहा। प्रेमा गाड़ी में बैठी और उसकी गाड़ी चल पड़ी। उसके सामने ही खड़ा था। उसने मुझे देखा तक नहीं। लेकिन सच बताऊँ प्रेमा से मुझे प्यार हो चुका था।
पूरी रात प्रेमा के बारे में ही सोच रहा था मैं और अगले दिन फिर शूट पर गया। आज प्रेमा और भी ज़्यादा सुंदर सुर सेक्सी लग रही थी। आज उसने मुझे देखा पर Hi भी नहीं बोला। गाड़ी से उतर कर सीधे अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। 
मैं समझ चुका था कि प्रेमा तो मेरे को देखती ही नहीं और मैं उससे प्यार कर बैठा हूँ। यह पागलपन नहीं है तो क्या है? मैंने अपने दिल को समझाना शुरू किया। लेकिन दिल समझने को तैयार ही नहीं था। मैंने सोचा कि यह शूटिंग ही छोड़ दूँ, लेकिन एयर 5 दिन का ही शूट बचा था। 
मैंने सोच लिया कि प्रेमा कर बारे में सोचना और उसे याद करना बंद कर दूंगा।
रात में मैंने अपने आप पर कंट्रोल रखा और सोने की कोशिश करते-करते मैं सो गया।
अगले दिन शूट पर गया। शाम को शूटिंग ख़त्म होते ही मैं बाहर सड़क पर आया और घर जाने के लिए किसी गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था। तभी मेरे सामने एक गाड़ी आ कर रुकती है और उसमें से एक हाथ इशारा करता है अंदर बैठने का। मैं बिना सोचे , बिना देखे उस गाड़ी में बैठ गया। अंदर जैसे ही देखा, प्रेमा बैठी नज़र आई। मैं कुछ पूछता, इससे पहले ही गाड़ी रफ़्तार से चल दी और सुनसान एरिया की तरफ़ बढ़ने लगी।
गाड़ी एक समंदर किनारे से कुछ दूर पहले ही रुकी। बिल्कुल सन्नाटा था और अंधेरा भी हो चुका था। मैंने जससे पूछा- यहाँ क्यों आई हो प्रेमा?
उसने औए होठ पर हाथ रखते हुए चुप रहने का इशारा किया और देखते-देखते उसके होठ मेरे होठ पर आ चुके थे। आखिर मैं भी तो मर्द ठहरा अपने आप को कब तक रोक पाता। 
थोड़ी देर बाद वो मेरे बदन से लिपटी थी, मैं उसके बदन से। सन्नाटे और अंधेरे में उसकी सिसिकारियाँ गूंज रही थीं।
फिर उसने मुझे उसी जगह पर गाड़ी से छोड़ते हुए कहा- "सुनो, कल फिर यही मिलना, बहुत मज़ा आया"।
कहते हुए उसने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दिया। मैं उसकी जाती हुई गाड़ी को देख रहा था और सोच रहा था कि क्या जो कुछ भी प्रेमा ने मेरे साथ किया, वो सच था? 
लेकिन यह एक दिन की बात, सिलसिला बन गया। वेव्व जगह से प्रेमा का मुझे रिसीव करना। उसी जगह पर वो मेरे औए प्रेमा के बीच........। और उसी जगह वे मुझे छोड़ते हुए कहना कि..."सुनो, कल फिर यही मिलना, बहुत मज़ा आया"।
लेकिन इसी मज़े ने उसी प्रेमा ने मेरी क्या हालत कर दी, बताऊंगा इस कहानी के अगले अंक में। क्योंकि प्रेमा जैसी दिखती थी वैसी थी नहीं। वो हर खेल दिमाग से खेलती थी जिसमें सामने वाले को को अपनी जाल में फंसाने के लिए, अपने हुस्न का सहारा लेती थी। और जाल में फंसा कर करती क्या थी...बताऊंगा इस कहानी के भाग 2 में।

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