बदलता दौर, बदलता ज़माना शायद सब कुछ बदल रहा है। एक ख़्वाब ही नहीं बदलता जो वर्षों से आँखों में पल रहा है। ना जाने क्या चाहता...
बदलता दौर, बदलता ज़माना
शायद सब कुछ बदल रहा है।
एक ख़्वाब ही नहीं बदलता
जो वर्षों से आँखों में पल रहा है।
ना जाने क्या चाहता है दिल
ना जाने क्यों मचल रहा है,
अपना साया भी साथ नहीं रहा
जो साथ हर पल रहा है।
हम ख़ुद ही हो गए हैं बेबश
या हमें कोई छल रहा है,
कितना पागल है ये दिल
जो दिखावे में बहल रहा है।
कल कोई ये भी कह रहा था
कि अब सूरज पूरब में ढ़ल रहा है,
कहने वाले ये भी कहने लगे हैं
कि अब आसमाँ ज़मीं पर चल रहा है।
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