Lok Kala: हमारी धरोहर, हमारी पहचान मैं एक शो का निर्माण करने जा रहा हूँ। जिस शो के माध्यम से मैं अपनी उस धरोहर की तलाश करने आ रहा हूँ, जो...
Lok Kala: हमारी धरोहर, हमारी पहचान
मैं एक शो का निर्माण करने जा रहा हूँ। जिस शो के माध्यम से मैं अपनी उस धरोहर की तलाश करने आ रहा हूँ, जो धरोहर अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
जी हाँ, मैं उन लोक कलाओं की तलाश करने के लिए आ रहा हूँ, जो लोक कला हमारी विरासत थी, हमारी पहचान थी। लेकिन बहुत दुख की बात है कि आज हमारी लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं। आख़िर क्यों? क्यों विलुप्त हो रही है हमारी लोक कला? आख़िर क्यों भूल रहे हैं हम अपनी उस पहचान को, जिनसे हमारी पहचान है?
उन्हीं लोक कलाओं को, उसी पहचान को, अपनी उसी विरासत और उसी धरोहर को मैं तलाश करने के लिए आ रहा हूँ। मैं भारत को ढूंढ़ने आ रहा हूँ। मैं भारत को भारत से मिलने के लिए आ रहा हूँ। जो कहीं गुम होता जा रहा है और मैं इसकी शुरुवात करने जा रहा हूँ, बिहार से। इस तरह देश के हर राज्य, हर जिले और हर गाँव में जा कर लोक कलाओं को ढूंढूंगा और उसको भी आप से मिलाऊँगा, जिसने अभी तक अपनी इस लोक कला को संभाल कर रखे हुए है।
बिहार की लोक कलाएं
मैं बिहार की लोक कलाओं की तलाश करने निकलूंगा। यहाँ के हर जिले में जाऊँगा। और ढूँढूगा अपनी उस विरासत को जो विलुप्त होती जा रही है।
विरहा: विलुप्त होता जा रहा है विरहा। आख़िर क्यों? इसे ज़िन्दा रखने वाले ही अब ज़िन्दा नहीं हैं या फिर इसे अब कोई सुनना पसंद नही करता। आऊंगा आपके पास भी और आपसे भी पूछूंगा यह सवाल।
चैता: चैता तो आज भी यदा-कदा सुनने को मिल जाता है। लेकिन वो चैता कहाँ गया, जिसकी धुन से बयार की दिशा चेंज हो जाती थी। कहीं ना कहीं, धीरे-धीरे गुमनामी अंधेरों की तरफ़ बढ़ता जा रहा है चैता का भविष्य।
निर्गुन: अब कहाँ सुनने को मिलता है निर्गुन? वो ज़माना और था। जब निर्गुन की धुन सुनाई देती थी, तब ज़िन्दगी का वास्तविक मायने समझ में आता था।
सोहर: क्या आपको नहीं लगता कि अब विलुप्त होता जा रहा है, सोहर का दौर। यह लोक कला भी अब हमारे समाज के बीच से गायब हो रही है। आख़िर क्यों?
इस तरह की और भी कई लोक कला है जो अब विलुप्त होती जा रही हैं। उन्हीं लोक कलाओं को मैं ढूंढ़ने के लिए आ रहा हूँ।
फिर से उसी विरहा की तान को सुनने के लिए आ रहा हूँ। फिर से उसी चैता की शान को देखने के लिए आ रहा हूँ। फिर से उसी निर्गुन गान का एहसास करने आ रहा हूँ। आ रहा हूँ आपकी पहचान से आपकी पहचान कराने के लिए। आपके शहर, आपके गाँव।
Conlcusion
दोस्तों! आपका साथ चाहिए। इस लोक कला के सफ़र में आपका सहयोग चाहिए। क्योंकि बिखरे हुए लोक रंगों की तलाश करना अकेले ही संभव नहीं है। हर तरह से मुझे आपका सहयोग चाहिए। क्योंकि यह आपकी और हमारी विरासत है। हमारी पहचान है।
अगर आपकी भी नज़र में कोई अच्छा गाने वाला हो चैता, विरहा, निर्गुन, फ़ाग तो आप मुझे ज़रूर बताइये। आप मुझे फोन कर सकते हैं: 8210747404 और इसी नंबर पर Whatsapp भी कर सकते हैं। हम और आप मिलकर तलाश करेंगे अपनी लोक कला का। जिनसे हमारा "Silsila Zindagi Ka" आगे बढ़ता रहे।
मैं एक शो का निर्माण करने जा रहा हूँ। जिस शो के माध्यम से मैं अपनी उस धरोहर की तलाश करने आ रहा हूँ, जो धरोहर अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
जी हाँ, मैं उन लोक कलाओं की तलाश करने के लिए आ रहा हूँ, जो लोक कला हमारी विरासत थी, हमारी पहचान थी। लेकिन बहुत दुख की बात है कि आज हमारी लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं। आख़िर क्यों? क्यों विलुप्त हो रही है हमारी लोक कला? आख़िर क्यों भूल रहे हैं हम अपनी उस पहचान को, जिनसे हमारी पहचान है?
उन्हीं लोक कलाओं को, उसी पहचान को, अपनी उसी विरासत और उसी धरोहर को मैं तलाश करने के लिए आ रहा हूँ। मैं भारत को ढूंढ़ने आ रहा हूँ। मैं भारत को भारत से मिलने के लिए आ रहा हूँ। जो कहीं गुम होता जा रहा है और मैं इसकी शुरुवात करने जा रहा हूँ, बिहार से। इस तरह देश के हर राज्य, हर जिले और हर गाँव में जा कर लोक कलाओं को ढूंढूंगा और उसको भी आप से मिलाऊँगा, जिसने अभी तक अपनी इस लोक कला को संभाल कर रखे हुए है।
बिहार की लोक कलाएं
मैं बिहार की लोक कलाओं की तलाश करने निकलूंगा। यहाँ के हर जिले में जाऊँगा। और ढूँढूगा अपनी उस विरासत को जो विलुप्त होती जा रही है।
विरहा: विलुप्त होता जा रहा है विरहा। आख़िर क्यों? इसे ज़िन्दा रखने वाले ही अब ज़िन्दा नहीं हैं या फिर इसे अब कोई सुनना पसंद नही करता। आऊंगा आपके पास भी और आपसे भी पूछूंगा यह सवाल।
चैता: चैता तो आज भी यदा-कदा सुनने को मिल जाता है। लेकिन वो चैता कहाँ गया, जिसकी धुन से बयार की दिशा चेंज हो जाती थी। कहीं ना कहीं, धीरे-धीरे गुमनामी अंधेरों की तरफ़ बढ़ता जा रहा है चैता का भविष्य।
निर्गुन: अब कहाँ सुनने को मिलता है निर्गुन? वो ज़माना और था। जब निर्गुन की धुन सुनाई देती थी, तब ज़िन्दगी का वास्तविक मायने समझ में आता था।
सोहर: क्या आपको नहीं लगता कि अब विलुप्त होता जा रहा है, सोहर का दौर। यह लोक कला भी अब हमारे समाज के बीच से गायब हो रही है। आख़िर क्यों?
इस तरह की और भी कई लोक कला है जो अब विलुप्त होती जा रही हैं। उन्हीं लोक कलाओं को मैं ढूंढ़ने के लिए आ रहा हूँ।
फिर से उसी विरहा की तान को सुनने के लिए आ रहा हूँ। फिर से उसी चैता की शान को देखने के लिए आ रहा हूँ। फिर से उसी निर्गुन गान का एहसास करने आ रहा हूँ। आ रहा हूँ आपकी पहचान से आपकी पहचान कराने के लिए। आपके शहर, आपके गाँव।
Conlcusion
दोस्तों! आपका साथ चाहिए। इस लोक कला के सफ़र में आपका सहयोग चाहिए। क्योंकि बिखरे हुए लोक रंगों की तलाश करना अकेले ही संभव नहीं है। हर तरह से मुझे आपका सहयोग चाहिए। क्योंकि यह आपकी और हमारी विरासत है। हमारी पहचान है।
अगर आपकी भी नज़र में कोई अच्छा गाने वाला हो चैता, विरहा, निर्गुन, फ़ाग तो आप मुझे ज़रूर बताइये। आप मुझे फोन कर सकते हैं: 8210747404 और इसी नंबर पर Whatsapp भी कर सकते हैं। हम और आप मिलकर तलाश करेंगे अपनी लोक कला का। जिनसे हमारा "Silsila Zindagi Ka" आगे बढ़ता रहे।
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