Poem: गाँव में चना और सरसो के साग का मौसम है
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Poem: गाँव में चना और सरसो के साग का मौसम है

Poem: गाँव में चना और सरसो के साग का मौसम है


दोस्तों! अभी-अभी गाँव से लौटा हूँ। बहुत ठंड पड़ रही है वहां। सरसो फुलाने लगे हैं। खेत लहलहाने लगे हैं। गाँव जाऊं और गाँव पर कुछ ना लिखूँ, हो ही नहीं सकता। गाँव पर एक Poem.

Poemगाँव में चना और सरसो के साग का मौसम है
गाँव में  बहुत  सर्दी  पड़  रही है
अभी भी हर दिन यह बढ़ रही है।
सर्द बयार बहुत सितम ढ़ा रही है
फिर भी मन को बहुत भा रही है।।
हर तरफ अलाव और आग का मौसम है
आओ, आ जाओ कुछ दिन के लिए गाँव
यहाँ चना और सरसो के साग का मौसम है।
खेसारी भी अब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा है
गेंहूँ भी अपने पैरों  पर  खड़ा होने  लगा है।
फसलें लहलहा रही हैं, हर तरफ हरियाली है
उस पर सुबह की ओस ने जगह बना ली है।।

कंबल कांप रहा है और रजाई रो रही है
कब दिन निकल रहा, कब रात हो रही है।
मड़ई से अभी भी रोज़ शीत टपक रहा है
जाड़ा बेरहमी से शरीर पर लपक रहा है।।

संक्रांति  के  बाद भी शरीर कांप रहा है
बूढ़ा,  ज़वान  सब  आग  ताप  रहा  है।
जो भी हो ठंड की बात ही कुछ और है
इसके दिन, रात की बात ही कुछ और है।।
ये जाड़े का  मौसम  जो चला जायेगा
फिर ये   साल  भर  बाद ही  आएगा।
फिल्मी गाने तो बहुत सुन लिए शहर में
यहाँ पाराती के राग का मौसम है।
आओ, आ जाओ कुछ दिन के लिए गाँव
यहाँ चना और सरसो के साग का मौसम है।

तो दोस्तों! यह था poem "गाँव में चना और सरसो के साग का मौसम है"। जुड़े रहिये हमारे ब्लॉग "Silsila Zindagi Ka"  के साथ और भी रचनायें पढ़ने के लिए।

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