Zari Hai Silsila Badalte Rishton Ka/ज़ारी है सिलसिला बदलते रिश्तों का
Zari Hai Silsila Badalte Rishton Ka/ज़ारी है सिलसिला बदलते रिश्तों का
और ये बदलते ही जायेंगे
टूटना है जिन रिश्तों को वो टूट जायेंगे
और जो अटूट हैं रिश्ते
मेरी महबूबा
रिश्ते दिमाग से नहीं
रिश्ते दिल से बनते हैं
जो भी बनते हैं रिश्ते
बड़ी मुश्किल से बनते हैं।
यहाँ जीने की भी राह नहीं
यहाँ मरने की भी राह नहीं
सब ख़ुद में परेशान हैं यहाँ
किसी को रिश्तों की परवाह नहीं।
ख़ुद को लोग अपना बताते हैं
पर रिश्ते कब, कहाँ निभाते हैं
जो जीवन भर साथ देने का करते हैं वादा
वो मुश्किल में साथ छोड़ जाते हैं।
यहाँ भूल जाते हैं लोग रिश्ता बना कर
साथ छोड़ देते हैं लोग अपना बता कर
रिश्ते नातों की यहाँ किसको क़द्र है
लोग चले जाते हैं एहसान जता कर।
वक़्त और उम्र दोनों ढ़लते हैं
और अनवरत ढ़लते ही जायेंगे
ज़ारी है सिलसिला बदलते रिश्तों का
और ये बदलते ही जायेंगे
टूटना है जिन रिश्तों को वो टूट जायेंगे
और जो अटूट हैं रिश्ते
वो अनवरत चलते ही जायेंगे।
ज़ारी है सिलसिला बदलते रिश्तों का
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