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जहां सुकूं मिले अब ऐसा आशियां ढूंढते हैं

ढूंढते    हैं    रोज़   मंजिल    को   और    मंजिल   से  ही मंजिल   का    पता     पूछते    हैं ख़ुद  को   समझे   नहीं   और    करते    रहे...


ढूंढते    हैं    रोज़   मंजिल    को   और    मंजिल   से  ही
मंजिल   का    पता     पूछते    हैं
ख़ुद  को   समझे   नहीं   और    करते    रहे    गलतियां
ख़ुद से ही खुद की ख़ता पूछते हैं

जब    वक़्त   था   हमारा, उस   वक़्त  की कद्र  ही न किये
आज  उस  वक़्त  को  कहां  नहीं  ढूंढते  हैं
एक वज़ूद जो ज़िन्दगी का था, चला   गया   न  जाने  कहाँ
आज  भी  हम  उसे  यहां  से  वहां ढूंढते हैं

उल्फ़त की जो चादर है सिमट रही है आहिस्ता-आहिस्ता
फिर से   इसे  संजोने  का   रास्ता   ढूंढते   हैं
आसमां में अब चाँद को देखने की आदत ही चली गयी है
सितारों   की   दुनिया    में  जहां   ढूंढते   हैं

वो इश्क, मोहब्बत, चाहत सब के सब अब बेगाने हो गए
फिर इन्हें अपना बनाने की कोई दुआ ढूंढते हैं
ज़माने   के   कारवाँ में   चलते-चलते   थक   गए   हैं  हम
जहां   सुकूं  मिले   अब   ऐसा आशियां  ढूंढते  हैं 

खफ़ा हो कर ज़िंदगी ने ज़िंदगी का  हाथ  छोड़  दिया  है
फिर से ज़िन्दगी साथ चले ये  सिलसिला ढूंढते हैं
जहां सिर्फ  ग़ज़ल  ही   कहे , जहाँ   सिर्फ   गीत ही बोले 
जहां सिर्फ दीवारें सुनें, ऐसा कोई मकां ढूंढते हैं

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