Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

यह भी पढ़िए

latest

ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही एक स्त्री

सुरीले सपनों की मीठी धुन पर गुनगुनाती और थिरकती एक स्त्री. उम्मीदों की सतरंगी किरणें लिए, ज़माने को बदलने का हौसला लिया आगे बढ़ती ...





सुरीले सपनों की मीठी धुन पर गुनगुनाती और थिरकती एक स्त्री. उम्मीदों की सतरंगी किरणें लिए, ज़माने को बदलने का हौसला लिया आगे बढ़ती एक स्त्री. खालीपन खुशियों को भरने का इरादा लिए अपने सफ़र को तै  करती  एक स्त्री, एक लम्बी उड़ान की तैयारी और आसमान के उस पार जाने के लिए तैयार एक स्त्री....वो है जो एक स्त्री, नामुमकिन को मुमकिन बनाने की तैयारी में लगी एक  है. तो यकीन मानिए, अब हर नामुमकिन, मुमकिन बन जाएगा. हर रोज़ की बदलती दुनिया में आखिर कौन है स्त्री और क्या है उसका अस्तित्व....?

मैं बड़ी हो कर डॉक्टर बनूंगी. मैं बड़ी हो कर इंजीनियर बनूंगी और मैं...मुझे तो आईपीएस बनना है. जाने कितने ख्व़ाब आँखों में तैर रहे होते हैं स्त्री के.तभी किसी की कड़कती आवाज़ आती है....लड़की है, लड़की की तरह रह. ज़्यादा बड़े सपने मत देख. 

वो स्त्री जो अभी थोड़ी देर पहले जाने क्या-क्या ख्व़ाब बुन रही थी, उस आवाज़ की वज़ह से थोड़ा उदास हो गयी. लेकिन उम्मीदों का दामन अभी भी नहीं छोड़ा है उसने. क्योंकि उसे तो उन्मुक्त आकाश में उड़ना है. उसे तो बहुत दूर और बहुत दूर जाना है, जहां उसकी मंजिल उसका इंतज़ार कर रही है. और यही से शुरू होती है, एक स्त्री की स्त्री बनने की कहानी और सबकी सोच को बदलने की कहानी. और यहीं से  शुरू होता है एक स्त्री के सफ़र की कहानी. ये सफ़र किसी के नाम, उसके काम और उसकी कामयाबी का नहीं है. बल्कि ये सफ़र है खुद का स्त्री होने और "स्त्री"शब्द को परिभाषित करने का. साथ ही खुद को ज़िंदा रखते हुए आगे बढ़ने का. 

सफ़र शुरू हो चुका है. वक़्त के साथ, ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है एक स्त्री. अपनी ज़िंदगी की रोज़ एक नई कहानी लिख रही है एक स्त्री. डॉक्टर, इंजीनियर, लेखक और जाने क्या-क्या बनने की तैयारी में जुट गयी है स्त्री. बड़ी शिद्दत और समर्पण से अपनी सफलता को पाने में जुट गयी है एक स्त्री. तिनका-तिनका कर आसमान बुनने में लग गयी है स्त्री. अपनी उम्मीदों के कैनवास पर हिम्मत और सूझ-बूझ के साथ, दिलो-जान से जुट गयी है स्त्री, तो वो सब कुछ हासिल कर लेगी, जो चाहती है एक स्त्री.
समय गुज़रता है और एक दिन वो भी आता है जब अपने सपनों को हक़ीकत में बदल देती है स्त्री और तब वे ही लोग उसका उदाहरण देने लगते हैं, जो उसको स्त्री होने का मतलब समझा रहे थें. जो स्त्री होने के नाम पर उसके पैरों को बंदिशों से बाँधने के लिए तैयार थें. 
लेकिन वो तो जीती-जागती, हिम्मती, साहसी स्त्री है और उसमें भी वो 21 वीं सदी की स्त्री है. 
वो बखूबी समझती  है अपनी हर ज़िम्मेदारी. घर-परिवार की ज़िम्मेदारी. अपने-परायों की ज़िम्मेदारी. बिखरे हुए आशियां को स्वर्ग बनाने की ज़िम्मेदारी. हर दर्द का सहन करते हुए भी मुस्कुराने की ज़िम्मेदारी. कभी किसी का प्यार तो कभी किसी का दुत्कार सहने की ज़िम्मेदारी. सबको संभालते हुए ऑफिस समय से पहुँचने की ज़िम्मेदारी और ऑफिस से छूटते ही ज़ल्दी घर लौटने की ज़िम्मेदारी.जाने कितनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी है एक स्त्री, पर किसी से कभी उसको शिकायत नहीं किसी बात की.  
हाँ इतना ज़रूर है कि वो स्त्री कभी-कभी ऐसा सवाल पूछ डालती है, जिसका ज़वाब किसी के पास नहीं होता. 
"हम स्त्रियाँ तो बदल रही हैं, लेकिन क्या पुरुष भी...?"
इसका ज़वाब किसी के पास नहीं है. क्योंकि ये सवाल एक स्त्री ने आज पुरुष से किया है और शायद इसका ज़वाब कोई नहीं दे पायेगा.
उस स्त्री को एक स्त्री ही रहने दो जो एक स्त्री है. पर ध्यान रहे कि उस स्त्री की आँखों में कई सतरंगी सपनें तैर रहे हैं. बस वो किसी बंदिश की वज़ह से फीके न हो जाएँ.
********************************************************************



No comments

Advertisment