दोस्तों!! प्रकृति का कहर कब और कहां टूट पड़े, कोई नहीं जानता। लेकिन हां, इतना ज़रूर है। जब प्रकृति कहर टूटता है तो न जाने कितने घर उसक...
दोस्तों!! प्रकृति का कहर कब और कहां टूट पड़े, कोई नहीं जानता। लेकिन हां, इतना ज़रूर है। जब प्रकृति कहर टूटता है तो न जाने कितने घर उसकी आग़ोश में आ जाते हैं। न जाने कितनी ज़िंदगियाँ उसमें समा जाती हैं। न जाने कितने अपनों का हाथ पल भर में छूट जाता है। और उन जगहों पर सिर्फ बच जाती हैं तो चीखें और आहें!! जिसे देखकर और सुन कर पत्थर दिल इंसान की भी आंखें नम हो जाती हैं।
प्राकृतिक आपदा का ऐसा ही कुछ मंज़र भारत के राज्य केरल में करीब 96 सालों बाद देखने को मिला। तबाही, तबाही और हर तरफ तबाही। बाढ़ ने रौद्र रूप धारण किया और पल भर में सब बर्बाद। केरल में बर्बादी का यह मंज़र देखकर पूरा देश रो पड़ा। तबाही का नज़ारा देखते ही बनता था।
हर तरफ पानी ही पानी, और बीच में फंसी ज़िन्दगानी...किसी का सपनों से साथ छूट रहा था, तो किसी का अपनों से हाथ छूट रहा था। हर तरफ आवाज़ थी चीखों और आहों की, ओर कमी नहीं थी हमदर्दों और पनाहों की। ये बात सच है कि प्राकृतिक आपदा का सामना कोई नहीं कर सकता, पर जब लोगों ने देखा कि "मेरा देश रो रहा है" तो हर कोई खड़ा हो गया उन बेसहारों का सहारा बनकर जिनकी रोशन ज़िन्दगी में इस बाढ़ ने पल भर में अंधेरा ला दिया है। हर कोई दुआ करने लगा कि "हे ऊपर वाले, इन बेसहारों को सहारा देना और अब बस करना"।
दोस्तों!! लिख तो रहा हूँ, लेकिन आपको बता दूं कि इस समय मेरे हाथ कांप रहे हैं और लफ्ज़ रो रहे हैं। त्रासदी का मंज़र अभी भी मेरी आँखों में तैर रहा है। उनकी चीखें और आहें अभी भी मेरे कानों में गूंज रही हैं, जो कराहते हुए इस प्राकृतिक आपदा में ग़ुम हो गए और मैं तहे-दिल से दुआ करता हूँ कि "अब और नहीं, बस करो ऊपर वाले। बर्बादी का यह मंज़र अब और नहीं"!
दोस्तों! मैं आपलोगों से ग़ुज़ारिश करूँगा कि आप लोग भी अपने दिल से एक बार दुआ ज़रूर कीजिये...जिनके अपने छूट गए, जिनके सपने टूट गए। क्योंकि दुआओं में असर ज़रूर होता है और निश्चित तौर पर आपकी दिल की एक दुआ से थम गया सफ़र जिनका...उनका फिर से "सिलसिला ज़िन्दगी का" चल पड़ेगा।
बहुत मार्मिक लेखन।
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