Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

यह भी पढ़िए

latest

एक वेश्या की सच्ची कहानी जो आपको रुला देगी।।Part 02।।

Story Of A Prostitue।।Part 02 अगर आपने इस कहानी का Part 01 नहीं पढ़ा है तो यहाँ देखिए-   Part 01।। एक वेश्या की सच्ची कहानी दोस...

Story Of A Prostitue।।Part 02

अगर आपने इस कहानी का Part 01 नहीं पढ़ा है तो यहाँ देखिए- Part 01।। एक वेश्या की सच्ची कहानी


दोस्तों!! जैसा कि आपने पढ़ा होगा मैंने एक कहानी लिखी थी। "एक वेश्या की कहानी " Part- 01: आज मैं अपने ब्लॉग "Silsila Zindagi ka" के माध्यम से "एक वेश्या की कहानी" Part- 02: पहुंचा रहा हूँ। बहुत लोगों का कॉल और मैसेज आये थे, Part 01 लिखने के बाद कि इसका Part 02 कब आएगा? आगे इस कहानी में क्या हुआ? सच बताऊँ, आगे इस बारे में मैं कुछ भी बताना नहीं चाह रहा था क्योंकि इस कहानी को सोचते और लिखते हुए कई बार रो पड़ता हूँ। क्योंकि हर बार मुझे मधु और उसके बच्चे का चेहरा याद आ जाता है। लेकिन आज मैं लिख रहा हूँ।
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं 2000 रुपये टेबल पर रखकर चला आया। घर आने के बाद मेरा मन बोझिल था। रात को नींद नहीं आ रही थी। मधु की बातें सोच-सोच कर आँखें नम हो जा रही थी। क्योंकि आज मुझे एक ऐसी ज़िन्दगी से रु-ब-रु हुआ था, जिसकी कल्पना मैंने सपने में भी नहीं की थी। मधु की बातों में आँहें और आँखों में आहें साफ झलक रही थीं। और हो भी क्यों न, उसने जिसको अपना समझा वही उसको नरक की दुनिया में तड़प कर रोने और आहें भरने के लिए छोड़ गया था।
खैर, मैंने सोच लिया था कि कल फिर मैं मधु से मिलने जाऊंगा। उससे बातें करूँगा। जाने क्यों ना चाहते हुए भी उस कोठे पर जाने का मन कर रहा था। गया तो था सिनेमा की कहानी ढूंढ़ने लेकिन एक ऐसी ज़िन्दगी से सामना हो गया कि Reel लाइफ को भूल कर Real लाइफ के बारे में सोचने लगा था।

ख़ैर, अगले दिन करीब 4 बजे मैं उसी कोठे पर पहुँचा। मैंने बैग में दूध का डब्बा मधु के बच्चे के लिए रकहा लिया था। जैसे ही कोठे पर पहुँचा कई लड़कियां बुलाने लगीं। रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए, मेकअप किये हुए अपने कस्टमर्स को लुभा रहीं थीं। पर मेरी निगाहें सिर्फ और सिर्फ मधु को ढूंढ़ रही थीं। पर मधु कहीं नज़र नहीं आ रही थी। मैं एक गैलेरी से होते हुए आगे बढ़ा, तभी पान खाती हुई एक मोटी और अधेड़ उम्र की महिला सामने से आती हुई दिखाई दी। मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने पूछा- "इधर क्या है? किसको ढूंढ़ रहा है? क्या चाहिए? सारी लड़कियां बाहर ही हैं, बाहर चल".
एक बार में इतने सारे सवाल सुन कर मैं थोड़ा सहम गया। फिर भी शाहस करते हुए कहा- "जी, वो....मधु से मिलना है". उस औरत ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और बोली- "आशिक़ है क्या उसका?"
मैंने कहा नहीं- बस यूं ही। उसका......? तभी उस औरत ने मुस्कुराते हुए कहा- "अच्छा तो तू उसका पेशल गिराहक है! आगे जा सबसे लास्ट वाला रूम मधु का है"। मैंने कहा- जी.....और आगे बढ़ गया।
फ़ायनली मैं मधु के कमरे के दरवाज़े पर गया। दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था। मैंने दरवाज़ा knock किया। कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला। सामने मधु खड़ी थी। और उसने आश्चर्य से पूछा- तुम? मैंने कहा- हाँ। मैंने इधर-उधर देखा और मधु से पूछा- मैं अंदर आऊं? उसने अंदर आने का इशारा क़िया। मैं उसके कमरे में प्रवेश किया।

दोस्तों! मैं आपसे सच बता रहा हूँ। वो कमरा नहीं नरक था। मुझे तो पल भर के लिए घुटन और घबराहट सी होने लगी। पूरी तरह गंदा भी था वो कमरा। मैं इधर -उधर कमरे में देखने लगा। बिखरे हुए मैले कपड़े। कई दिनों का झूठा पड़ा हुआ थाली। एक छोटी सी टीवी और एक टूटी हुई चारपाई। जिस पे उसका बच्चा सो रहा था। 
सब कुछ देखने के बाद मैंने मधु की तरफ देखा। तभी मधु पूछती है- "क्यों आये हो यहाँ"? मैंने कहा- "वो मैं दूध लेकर आया हूँ"। तभी मधु बोलती है- "ओ! तो तुम जो उस दिन 2000 रुपये देकर गए थे, उसके बदले में आज सुहागरात मनाने आये हो। पर आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। इसीलिए धंधे पर भी नहीं निकली। तुम किसी और दिन आना प्लीज़"। मधु विनम्र हो चुकी थी कहते-कहते। 
मैंने कहा-" नहीं, नहीं तुम ग़लत समझ रही हो। मैं तुम्हारे साथ सुहागरात मनाने के लिए नहीं आया हूँ। मैं तो तुम्हारे बच्चे के लिए दूध लाया हूँ"। यह सुन कर वो कुछ सोचने लगी और चारपाई पर बैठकर अपने सोये हुए बच्चे का सार सहलाने लगी। मैं भी वहाँ एक कुर्सी पर बैठ गया। मधु दूसरी दिशा में देखते हुए बोल रही थी- "पता है, आज कई सालों बाद किसी इंसान को देख रही हूँ। वरना यहाँ तो मुझे जो भी मर्द मिले, वो सब हैवान थे। क्या बताऊँ? यहाँ ज़िन्दगी कैसे गुज़ारनी पड़ती है? समझ लो, ज़िस्म तो है पर जान नहीं। कभी सोचा ही नहीं था कि ज़िन्दगी यहाँ ला कर पटक देगी। ज़िस्म का सौदा करते-करते ज़िन्दगी अब बोझ लगने लगी है। तुम्हें पता है? यहाँ कैसे-कैसे मर्द आते हैं? बाप रे! कितनी ख़्वाहिशें होती हैं उनकी? किसी को प्रेमिका की तरह प्यार चाहिए। किसी को पत्नी की तरह मज़े चाहिए तो किसी को नई-नवेली दुल्हन की तरह सुहागरात मनानी है। ऊपर से पैसे के समय सौ तरह के लफड़े। कभी कोई 100 रुपया में ही पूरी रात गुज़रना चाहता है तो कभी कोई 200 में ही बीवी बना कर रखना चाहता है। सबकी ख़्वाहिशें पूरी करनी पड़ती हैं। पता है तुम्हें? एक दिन मुझे बहुत तेज़ बुखार था। धंधे पर जाने का मन नहीं कर रहा था। पर मज़बूरी थी। चली गई। एक आदमी गाड़ी से आया और मुझे पसंद कर लिया और बोला मेरे साथ गाड़ी में चलो। मैं जाने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन कोठे की मालकिन की वजह से चली गईं। उस आदमी ने एक सुनसान जगह पर गाड़ी खड़ी किया और मेरे पर झपट पड़ा और मेरे ज़िस्म के साथ खूब खेला और अंत में 200 रुपये थमा दिए और बोला यहाँ से चले जाओ। मैं क्या बताऊँ? किस तरह मैं यहाँ तक पहुंची? गिरते-सम्भलते। और एक दिन तो हद ही हो गई। एक गिराहक दारू लेकर आया। बोला, साथ में पियो तो 300 रुपये दूंगा। वरना सिर्फ 100. पता है? 300 रुपये की लालच में मैं उसके साथ दारू पीने के लिए हाँ कर दी। पीते-पीते ज़्यादा ही पी लिया मैंने। इसके बाद वो मेरे ज़िस्म के साथ खेलने लगा और दूसरी तरफ मेरा बच्चा  रो रहा था। ज़्यादा नशा चढ़ने की वज़ह से मुझे कुछ ध्यान नहीं आ रहा था। जब वो आदमी चला गया तो मैं उसी तरह, उसी जगह पर सो गई। जब सुबह नींद खुली तो देखी मेरा बच्चा ज़मीन पर गिरा हुआ है और उसे बुखार हो गया है। मुझे बहुत अफ़सोस हुआ। लेकिन रात के 300 रुपए जो मिले थे, उसी से मैंने उसका इलाज कराया। जानते हो, कभी-कभी इस ज़िन्दगी से इतबी खीझ होती है कि मैं करता है, ख़ुद को ख़त्म कर लूं। लेकिन.....।"
इतना कहते-कहते मधु की आँखें भर आती हैं और वो अपने सोये हुए बच्चे की तरफ देखने लगती है। 
मधु की बातें सुनकर मेरा मन पूरी तरह बोझिल हो गया था। समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलूं? तभी मधु पूछती है- अच्छा तुम्हारा नाम क्या है? मैंने कहा- राज? मधु- कहाँ से हो तुम? मैंने कहा- बिहार।
बिहार सुनते ही वो चहकते हुए बोली- अरे मैं भी तो वही से हूँ। और अपने जिला और गाँव का नाम बताते हुए बोली- तुम वहाँ जाना तो मेरे मम्मी-पापा से ज़रूर मिलना और बताना कि तुम मुझ से मिले थे। और बोलना कि मैं उन्हें  बहुत याद करती हूँ और मिस भी बहुत करती हूँ। 
इतना कहते-कहते मधु रुक जाती है और कुछ सोचते हुए धीरे से कहती है- नहीं, नहीं मत मिलना। अगर उन्हें पता चल गया कि मैं कोठे पर.....मैं वेश्या....!! नहीं।
कहते हुए दूसरी दिशा में मुंह घुमा लेती है। उसकी आँखें भर आती हैं। फिर खुद को संभालते हुए कहती है- "तुम सनिमा कब बना रहे हो?" मैंने कहा- बहुत ज़ल्दी। अच्छा मधु, आप बिहार चलोगे? मैं आपको आपके गाँव ले कर चलूंगा। 
मधु चहकते हुए बोलती है- "हाँ, चलूंगी।" लेकिन फिर रुकते हुए कहती है- "नहीं, नहीं जाना मुझे गाँव। यहीं रहना है। क्योंकि मैं एक वेश्या हूँ और समाज किसी वेश्या की किस नज़र से देखता है, यह किसी से छुपा नहीं है।"
मैंने कहा- लेकिन किसी पता कि आप....? 
मधु- हाँ, किसी को नहीं पता, पर मुझे पता है कि मैं कितने मर्दों के साथ ....!!? कहते-कहते मधु लंबी सांस लेती है। तभी उसका बच्चा जग जाता है और रोने लगता है। मैं दूध का डब्बा निकाल कर मधु को दे दिया। मधु आने बच्चे को दूध पिलाने लगती है। अब और कुछ ना तो सुनने का और ना ही कहने का मन कर रहा था। मैं खड़ा हुआ और बोला- "मधु, मैं जा रहा हूँ।" फिर मैंने 2000 की नोट निकाला और मधु को दे दिया और बोला अपने बच्चे को अच्छे कपड़े दिला देना और ख़ुद भी ले लेना।"
कहते हुए एक बार मधु को देखा और एक बार बच्चे को। फिर कमरे से निकलने लगा। मधु भी मेरे पीछे-पीछे आने लगी। जैसे ही मैं दरवाज़े से बाहर निकला मधु ने आवाज़ दिया- सुनो।
मैं पीछे मुड़ा और मधु को देखा। उसकी आँखों में आंसू थें। नम आँखों से उसने पूछा- "फिर कब आओगे? मेरे ब...बच्चे के लिए दूध लेकर।"
मेरी आँखें भी भर आईं और मैंने अपने आंसूओं को छुपाते हुए कहा- बहुत, बहुत जल्दी। ज़ल्दी आऊंगा।
और तेज़ कदमों से वहाँ से निकल गया। जैसे ही गैलरी मुड़ रहा था, मधु की फिर आवाज़ सुनाई दी- "सुनो, जब सनिमा बना लेना तो मुझे भी दिखाना"।  
मैं बाहर आया, अंधेरा हो चुका था। गैलेरी से गुजरते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त और भी कई लड़कियां मेरे पास आती हैं और बोलती हैं- ऐ हीरो! आओ हमारे साथ भी मज़े ले लो। सिर्फ 100 रुपये ही दे देना। मैं सभी का चेहरा देख रहा था। मुझे हर चेहरे में एक मधु नज़र आ रही थी और हर मुस्कुराहट में मधु का दर्द। 

मैं सड़क पर आया एक Auto को रोका और बैठ गया। Auto में बैठा हुआ मैं रो रहा था। उस दिन मुझे महसूस हुआ था और सामना हुआ था एक ऐसी ज़िन्दगी से, जो ज़िन्दगी हो कर भी ज़िन्दगी नहीं थी। और मैं सोच रहा था- क्यों? आख़िर क्यों वेश्याओं को लोग हीन दृष्टि से देखता है? आज जो समाज उन वेश्याओं को इतनी हीन और घिन दृष्टि से देखता है, तो क्या वो समाज यह बताएगा कि - उन्हें वेश्या किसने बनाया? उन्हें इस हालात में जीने को मज़बूर किसने किया? और सबसे बड़ा सवाल- उन वेश्याओं को वेश्या कहने वाले समाज के लोग क्या उनके पास नहीं जाते? और अगर जाते हैं तो क्यों? वो वेश्या हैं। हीन हैं, घिन हैं। तो फिर क्यों?

ख़ैर, उसके बाद से अभी तक मैं मधु से मिलने नहीं गया हूँ, लेकिन ज़रूर जाऊँगा। जब इस पर सनिमा बना लूंगा तब। क्योंकि यह सनिमा मधु को मैं ज़रूर दिखाउंगा।

दोस्तों!! अगर आपको यह अच्छी लगी हो तो, इसे शेयर और कमेंट्स ज़रूर कीजियेगा। फिर मिलता हूँ आपसे ज़ल्दी ही, एक नए पोस्ट के साथ। Bye-Bye। 

( All Copyrights reserverd of this story By- Silsila Zindagi ka)

3 comments

  1. super and emotional story heart toiching...

    ReplyDelete
  2. ज़िन्दगी तो लोग जी रहे हैं। लेकिन अपने तरीके से नही न जाने कब ओ दिने आयेगा जब ज़िन्दगी लोगों को नही लोग ज़िन्दगी को जियेंगे ज़िन्दगी भी एक खेल के तरह हैं।
    कभी ज़िन्दगी लोग को जीने नही देते हैं। तो कभी लोग ज़िन्दगी को जीने नही देते हैं ।

    ReplyDelete

Advertisment