सुबह 6 बजे से हम निकल पड़े थे श्रावस्ती के लिए। यह यात्रा हमारे जीवन की सबसे यादगार यात्रा है। वैसे तो हर यात्रा हमारे लिए यादगार है। पर ...
सुबह 6 बजे से हम निकल पड़े थे श्रावस्ती के लिए। यह यात्रा हमारे जीवन की सबसे यादगार यात्रा है। वैसे तो हर यात्रा हमारे लिए यादगार है।
पर श्रावस्ती की यात्रा हमारे लिए बेहद यादगार है।
कपिलवस्तु (Kapilvastu India) जाने के बाद हमें बहुत कुछ वहां देखने को नहीं मिला।क्योंकि वहाँ जाने के बाद हम कपिलवस्तु संग्रहालय को देखना चाहते थे, पर संग्रहालय बंद था। इसके बाद हमारी pulsar 150 दौड़ने लगी थी श्रावस्ती जाने के लिए सुंदर सड़कों पर।
भारत-नेपाल बॉर्डर (Ind-Nepal Bordar) कर किनारे से बनी सड़कों से होते हुए हम श्रावस्ती के काफी करीब पहुंच जाना चाहते थे।
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मगर दूरी बहुत ज्यादा होने की वज़ह से शाम ढल गई और हम अब और अधिक गाड़ी नहीं चलाना चाह रहे थे।
तो हम श्रावस्ती से 16 किमी पहले Balrampur UP में ठहरने का कोई हॉटेल या गेस्ट हाउस (Hotel and Guest House in Balrampur UP) देखने लगे।
Balrampur 2-3 Hotel देखने के बाद हमें एक हॉटेल मिला UPT HOTEL BALRAMPUR.
UTTARPRADESH TRAVELER HOTEL BALRAMPUR.
UPT HOTEL BALRAMPUR RATE
NON AC- 1000
AC ROOM- 1680
एक रात बलरामपुर में गुज़ारने के बाद हम निकल पड़े श्रावस्ती की ओर। बीच में हमें एक ढाबा मिला, जहाँ हमने नाश्ता और चाय पीया। इसके बाद हम पहुंचे।
श्रावस्ती पहुंचते ही हमें एक अलग दिव्यता का एहसास हुआ। क्योंकि हमें ऐसा लगा जैसे हम बुद्ध को साक्षात देख रहे हैं।
सहेठ-महेठ गाँव- Saheth-Maheth Village
सहेठ-महेठ गाँव (Saheth-Maheth Village Shravasti) में हम सबसे पहले वहाँ गया जहाँ अंगुलिमाल का स्तूप और अंगुलिमाल की गुफा है।
इसके बाद हम पहुंचे वहां जहाँ जैन तीर्थंकर भगवान संभवनाथ (Jain Tirthankar Bhagwan Sambhavnath Birtholae Shravasti) की जन्मभूमि है।
सहेट (जेतवन) स्थल श्रावस्ती- Jetvan Shravasti
इसके बाद हम पहुंचे जेतवन श्रावस्ती। जहाँ 3 से 4 किमी में बौद्ध स्तूप पड़े हुए हैं। कड़ी धूप थी फिर भी हम यहाँ के हर दृश्य का दीदार कर लेना चाहते थे।
सुबह 6 बजे से हम निकल पड़े थे श्रावस्ती के लिए। यह यात्रा हमारे जीवन की सबसे यादगार यात्रा है।
वैसे तो हर यात्रा हमारे लिए यादगार है, पर श्रावस्ती की यात्रा हमारे लिए बेहद यादगार है।
History Of Shravasti
श्रावस्ती हिमालय की तलहटी मे बसे भारत-नेपाल सीमा के सीमावर्ती जिले बहराइच से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | उत्तर प्रदेश के इस जिले की पहचान विश्व के कोने-कोने मे आज बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप मे है।
इस जनपद का गठन दिनांक 22-05-1997 को हुआथा |दिनांक 13-01-2004 को शासन द्वारा इस जनपद का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था | पुनः माह जून 2004 सी यह जनपद अस्तित्व मे आया है | जनपद का मुख्यालय भिंगा मे है ,जो श्रावस्ती से 55 किमी0की दूरी पर है |जनपद कोशल एक प्रमुख नगर था | भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह कोशल देश की राजधानी थी | इसे बुद्धकालीन भारत के 06 महानगरो चम्पा ,राजगृह , श्रावस्ती ,साकेत ,कोशाम्बी ओर वाराणसी मे से एक माना जाता था | श्रावस्ती के नाम के विषय मे कई मत प्रतिपादित है| बोद्ध ग्रंथो के अनुसार अवत्थ श्रावस्ती नामक एक ऋषि यहाँ रहते थे , जिनके नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्त पड़ गया था |
महाभारत के अनुसार श्रावस्ती नाम श्रावस्त नाम के एक राजा के नाम पड़ गया | ब्राह्मण साहित्य , महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्त का नामकरण श्रावस्त या श्रावास्तक के नाम के आधार पर हुआ था |
श्रावस्तक युवनाय का पुत्र था ओर पृथु की छठी पीड़ी मे उत्पन्न हुआ था | वही इस नगर के जन्मदाता थे ओर उनही के नाम पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया | महाकाव्यों एवं पुराणों मे श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है |
बोधह ग्रांटों के अनुसार, वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे ओर कोसल नरेशो की आमदनी सबसे ज्यादा इसी नगर से हुआ करती थी| यह चौड़ी गहरी खाई से खीरा हुआ था | इसके अतिरिक्त इसके इर्द –गिर्द एक सुरक्षा दीवार थी, जिसमे हर दिशा मे दरवाजे बानु हुए थे |
हमारी प्राचीन कलाँ मे श्रावस्ती के दरवाजो का अंकन हुआ है | चीनी यात्री फ़ाहयान ओर हवेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाजो का उल्लेख किया है | यहाँ मनुष्यो के उपयोग – परिभाग की सभी वस्तुए सुलभी थी, अतः इसे सावत्थी का जाता है |
श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि का प्रमुख कारण यह था कि यहाँ पर तीन प्रमुख व्यापारिक पाठ मिलते थे , जिससे यह व्यापार का एक महान केंद्र बन गया था | यह नगर पूर्वे मे राजग्रह से 45 योजना दूर आकर बुद्ध ने श्रावस्ती विहार किया था |
श्रावस्ती से भगवान बुद्ध के जीवन ओर कार्यो का विशेष सम्बंध था | उल्लेखनीय है की बुद्ध ने अपने जीवन अंतिम पच्चीस वर्षो के वर्षवास श्रावस्ती मे ही व्ययतीत किए थे | बोद्ध धर्म के प्राचीर की दृस्टी से भी श्रावस्ती का महत्वपूर्ण स्थान था |
भगवान बुद्ध के प्रथम निकायो के 871 सुत्तों का उपदेश श्रावस्ती मे दिया था, जिसमे 844 जेतवन मे, 23 पुब्बाराम मे ओर 4 श्रावस्ती के आस –पास के अन्य स्थानो मे उपविष्ट किए गए |
श्रावस्ती मे जैन मतावलंबी भी रहते थे | इस धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी यहाँ कई बार आ चुके थे | बोद्ध मतावलंबीयो की भांति जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे | जैन साहित्य मे इसके लिए चंदपुरी तथा चंद्रिकापुरी नाम भी मिलते है | जैन धर्म के प्रचार केंद्र के रूप मे यह विख्यात था | श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर संभवनाथ व आठवे तीर्थकर चंद्रप्रभानाथ की जन्मस्थली थी | महावीर ने भी यहाँ एक वर्षावास व्यतीत किया था जैन धर्म मे सावधि अथवा सावत्थीपुर के प्रचुर उल्लेख मिलते है|
जैन धर्म भगवती सूत्र के अनुसार श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र मे भौतिक समृधि के चमोत्कृष पर थी | यहाँ के व्यापारियो मे शंख ओर मकखली मुख्य थे, जिन्होने नागरिकों के भौतिक समृद्धि के विकास मे महत्वपूर्ण योगदान दिया था |
जैन श्रोतों से पता चलता है कि कालांतर मे श्रावस्ती आजीवक संप्रदाय के एक प्रमुख केंद्र बन गया | श्रावस्ती का प्रगेतिहासिक काल का कोई प्रमाण नहीं मिला है शिवालिक पर्वत श्रखला कि तराई मे स्थित यह क्षेत्र सघन वन व औषधियों वनस्पतियों से आच्छादित था | शीशम के कोमल पत्तों कचनार के रकताम पुष्ट व सेमल के लाल प्रसूत कि बांसती आभा से आपूरित यह वन खंड प्रकृतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था|
श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकार्ण मे लाने के लिए प्रथम प्रयास जनरल कनिघम ने किया | उन्होने वर्ष 1863 मे उत्खनन प्रारम्भ करके लगभग एक वर्ष के कार्य मे जेतवन का थोड़ा भाग साफ कराया इसमे इसमे उनको बोधिसत्व की 7 फुट 4 इंच ऊंची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख मे इसका श्रावस्ती बिहार मे स्थापित होना ज्ञात है | इस प्रतिमा के अधिस्ठन पर अंकित लेख मे तिथि नष्ट हो गयी है | परंतु लिपि शस्त्र के आधार पर यह लेख कुषाण काल का प्रतीत होता है।
जनपद का प्रमुख प्रयटन स्थल पर भगवान बुद्ध की तपोस्थली कटरा तपोस्थली कटरा श्रावस्ती थाना इकौना मे है कटरा श्रावस्ती मे बोद्ध धर्म अनुयायियों द्वारा बोद्ध मंदिरो का निर्माण कराया गया है | जिसमे वर्मा बोद्ध मंदिर , लंका बोद्ध मंदिर , चाइना मंदिर , दक्षिण कोरिया मंदिर के साथ –साथ थाई बोद्ध मंदिर है | थायलैंड द्वारा डेनमहामंकोल मेडीटेशन सेंटर भी निर्मित कराया गया , जहां पर भरी संख्या मे विदेशी पर्यटको का आवागमन रहता है |
अपनी इस रोचक यात्रा के साथ हम आपसे विदा लेते हैं और ले चलेंगे आपको और रोचक सफर पर। पढ़ते रहिये Silsila Zindagi Ka
बहुत अच्छा
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