Chhath History Who is Chhathi Maai? Why We Celebrate Chhath Festival मैं उस मिट्टी से आता हूँ, जो मिट्टी सनातन के रस से सराबोर है। मैं उस...
Chhath History
Who is Chhathi Maai?
Why We Celebrate Chhath Festival
मैं उस मिट्टी से आता हूँ, जो मिट्टी सनातन के रस से सराबोर है।
मैं उस मिट्टी से आता हूँ, जहाँ ना सिर्फ उगते सूरज को बल्कि डूबते सूरज को भी अरघ्य दिया जाता है।
मैं उस मिट्टी से आता हूँ, जहाँ प्रकृति की पूजा की जाती है।
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मैं उस मिट्टी से आता हूँ, जहाँ का गीत दुनिया के हर गीत पर भारी पड़ता है- कांच ही बांस के बहँगिया (Kanch hi Baans ke Bahangiya)
Why We Celebrate Chhath Festival?
लोक आस्था का महापर्व छठ सिर्फ त्यौहार ही नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा की डोर है जिसमें हमारी श्रद्धा और आस्था बंधी हुई है।
तभी तो हम चाहे संसार के किसी भी कोने में क्यों ना रहे, जैसे ही छठ का त्यौहार करीब आता है हमें गांव बुलाने लगता है।
Chhath History
कहते हैं कि भगवान श्री राम और माता सीता ने राम राज्य की स्थापना (Mata Sita Started Chhath) के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी तभी से छठ मनाने की परंपरा चली आ रही है।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार छठ की परंपरा दानवीर कर्ण (Karna started Chhath Festival) ने शुरू की थी। कर्ण प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे और सूर्य को अर्घ्य देते थे।
मान्यताएं अनेक हैं, पर छठ त्यौहार लाखों में एक है। पर क्या आप जानते हैं कौन है छठी मैया? (Who is chhathi Maai)
प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इस देवी का नाम षष्ठी पड़ा। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा गया है और पुराणों में इस देवी का एक और नाम कात्यायनी भी है जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को होती है और इसी षष्ठी देवी को हम छठी मैया कहते हैं। जो नि:संतानों को संतान देती है और हम सब की रक्षा करती हैं।
दऊरा लेकर घाट की तरफ जाने वाली श्रद्धालुओं की लंबी कतार और महिलाओं के मुंह से निकलता मधुर गीत -गरज गरज देव बरसेले, ओरिए ओरिए मधु छुए...!!
(Chhath Song: Garaj Garaj Dev barsele, Oriye oriye madhu chuye)
ऐसी परंपरा ऐसी भक्ति ऐसा गीत और ऐसा त्यौहार इस संसार में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।
Chhath Pooja date 2022: 30 & 31 October
गमकते रास्ते, चमकते घाट, पटाखों की गूंज और फुलझड़ी की फुहार के साथ छठी मैया की अपार भक्ति के इस विहंगम दृश्य के सामने स्वर्ग की सुंदरता भी फीकी लगने लगती है। यह धरोहर, यह विरासत और हमारी यह छठ परंपरा युग युगांतर तक चलती रहेगी। हमेशा घाट जगमगाते रहेंगे और हमेशा यह गीत गूंजता रहेगा "कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए"।
हे छठी माई के संसार में कभी कोई भूखा न सोए कभी कभी किसी के घर में अन्न धन की कमी ना हो और इस संसार में किसी को दुख और कष्ट ना हो। इसी कामना के साथ में आप सब से विदा लेना चाहूंगा।
CONCLUSION
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