क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं कर्तव्य पथ पर जो भी मिला ये भी सही वो भी सही वरदान नहीं मांगूंगा हो कुछ पर हार ...
क्या हार में, क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला
ये भी सही वो भी सही
वरदान नहीं मांगूंगा
हो कुछ पर हार नहीं मानूंगा!
-: अटल बिहारी बाजपेयी
वक़्त से भी आगे चलने वाले, कभी न हार मानने वाले एक महान नेता और महान इंसान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। जी हां भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का देहांत हो गया । हर कर्तव्य का संजीदगी से निर्वाह करने वाले, अपने पथ पर हमेशा अटल और अडिग खड़े रहने वाले इस बेहतरीन इंसान और महान नेता का जाना निश्चित तौर पर बड़े दुःख की बात है। क्योंकि बाजपेयी जी की तरह ना तो कोई नेता था और ना ही भविष्य में कोई होगा। सचमुच, उनकी जगह कोई नहीं ले सकता है । एक अटल इरादे के पक्के सपूत के जाने से निश्चित तौर पर भारत माता की आंखें भी नम हो गई होंगी । क्योंकि ऐसे महान इंसान तो धरती पर सिर्फ एक बार ही जन्म लेते हैं।
आपको बतातें चलें कि बाजपेयी जी 11 जून से एम्स में भर्ती थे । लगातार इलाज के बावजूद भी उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं और 93 वर्ष की उम्र में उनका जीवन सफ़र आज ख़त्म हो गया। उनके जाने से सबको झटका लगा है और सभी की आंखें नम हैं।
एक राजनीतिज्ञ के अलावा अटल बिहारी बाजपेयी जी एक शानदार कवि भी थे और उनकी कई कविताएं मशहूर हैं।
बाजपेयी जी का राजनीतिक सफ़र-: सन 1996 में पहली बार वो मात्र 13 दिनों के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने थे। फिर इसके बाद सन 1998-1999 में बाजपेयी जी 13 महीनों के लिए प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे और फिर लोगों का विश्वास जीतने के बाद बाजपेयी जी 1999 से 2004 यानि पूरे पांच वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री का पदभार संभालते रहे। अटल इरादों के धनी बाजपेयी जी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का खूब मां बढ़ाया । वो एक ऐसे महान नेता थे कि दोस्ती भी बड़ी शिजद्दत से निभाते थे और दुश्मनी भी।
अटल बिहारी बाजपेयी जी की कुछ प्रसिद्ध कविताएं -:
1. बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं
पांवों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वलायें
निज हाथों में हँसते-हँसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
2. "हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा",
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ ।
गीत नया गाता हूँ ।
3. मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़।र
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
दोस्तों।! ये थीं बाजपेयी जी की कुछ कविताएँ। वैसे और भी उनकी बहुत रचनाएं हैं। आप पढ़ सकते हैं।
मैं अपने ब्लॉग की तरफ से और अपने सच्चे हृदय से भारत के महान नेता और इस महान राजनीतिज्ञ श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और कहता हूँ-
" लौटकर आ सके न जहां में तो क्या,
याद बनकर रहोगे दिलों में सदा"।
naman
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