आज मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आपको मिलाने जा रहा हूँ भोजपुरी सिनेमा जगत के दिग्गज SCREEN WRITER "राजेश पाण्डेय" से। जो उम्दा ले...
आज मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आपको मिलाने जा रहा हूँ भोजपुरी सिनेमा जगत के दिग्गज SCREEN WRITER "राजेश पाण्डेय" से। जो उम्दा लेखक के साथ-साथ एक बेहतरीन इंसान भी हैं। सकारातमक सोच से ओत-प्रोत, हर मुश्किल का डँटकर सामना करने वाले इस व्यक्तित्व से जब मैंने पूछा
"कैसा अनुभव रहा अब तक का आपका मुम्बई और फ़िल्म इंडस्ट्री में?
तो "राजेश पाण्डेय" मुस्कुराते हुए कहते हैं- "हर मोड़ पर ज़िन्दगी हमें आज़माती रही, हम भी इसे आज़माते रहे...चोट मिलता रहा, चोट खाते रहे, हँसते रहे-गुनगुनाते रहे"! और इसके बाद इन्होंने ख़ुद के बारे में, फ़िल्म इंडस्ट्री के बारे में और भी बहुत कुछ बताया।
हर क़ीमत पर मुझे लेखक ही बनना था-
मैं बिहार के छपरा जिले से बिलांग करता हूँ। स्कूल और कॉलेज समय से ही मैं कविताएँ और गाना लिखा करता था। कई NEWSPAPER में मेरी कविताएँ प्रकाशित होती रहती थी। मुझे शब्दों से बहुत प्रेम था और शब्दों को भी मुझसे। शायद इसी का परिणाम है कि मेरा मन और कहीं नहीं लगा और मैं अपनी नौकरी छोड़कर दुसरे शहर से मुम्बई चला आया। मैं कहीं भी रहा, किसी भी अन्य क्षेत्र में काम करने की कोशिश किया लेकिन मेरा मन नहीं लगा और फिर मैंने सोच लिया कि मुझे लेखक ही बनना है और शायद मैं इसी के लिए बना हूँ और फिर मेरा मुम्बई का सफ़र शुरू हो गया।
वक़्त हर मोड़ पर मेरा इम्तिहान लेता रहा-
मुम्बई आये हुए मुझे क़रीब 10 साल हो गए और वक़्त का पता भी नहीं चला। कब और कैसे गुज़र गया? जब पीछे मुड़कर देखता हूँ कि क्या खोया, क्या पाया? तो खुशी भी होती है और थोड़ा ग़म भी। खुशी इसलिए कि यहाँ आ कर बतौर लेखक भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में मैंने अपनी जगह बनाई और ग़म इसलिए कि यहाँ वक़्त हर मोड़ पर मेरा इम्तिहान लेता रहा। फिर भी मैं किसी भी हालात से घबराया नहीं, बल्कि उसका सामना किया। शायद उसी का नतीज़ा है कि मैं इस शहर में आज तक बरकरार हूँ।
धन्यवाद उनको जिन्होंने मुझ पर भरोसा जताया-
मैं लगभग 15 भोजपुरी फिल्में लिख चुका हूँ। जिनमें कई फिल्में BOX OFFICE पर हिट रहीं और मुझे इन फिल्मों से इंडस्ट्री में पहचान मिली। कुछ फिल्मों का मैं नाम लेना चाहूँगा- अदालत, सईयां जी दिलवा माँगेले, आवारा बलम, कहिया बियाह बोल$ करब$, इसके अलावा मैं महुआ टीवी का चर्चित शो 'के बनी करोड़पति' में भी बतौर लेखक काम कर चुका हूँ और लोगों ने मेरी लेखनी की बहुत तवज़्ज़ो भी दिया है। जितने भी प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के साथ मैंने काम किया, मुझे अच्छा लगा और हर बार एक नया अनुभव हुआ। उन सभी को मैं धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मुझ पर भरोसा जताया।
आपसी वैमनस्य भोजपुरी सिनेमा का अंत कर देगा-
बातचीत का सिलसिला गए बढ़ाते हुए और थोड़ा दुःख जताते हुए "राजेश पाण्डेय" कहते हैं- भोजपुरी सिनेमा को अति सुधार की आवश्यकता है। और सबसे पहली सुधार की आवश्यकता यह है कि आपसी वैमनस्य ख़त्म हो। नहीं तो आज का यह आपसी वैमनस्य एक दिन महाभारत का रूप लेकर इस दौर के भोजपुरी सिनेमा का अंत कर देगा। इसलिए सबको सम्भलने की ज़रूरत है। यह समय लड़ने का नहीं बल्कि सोच-विचार करने का और एक जुट हो कर आगे बढ़ने का है। इसके अलावा मेरा मानना है कि भोजपुरी सिनेमा तब तक लड़खड़ाता रहेगा जब तक लेखक को मान-सम्मान, उसकी क़द्र और उसकी कलम की क़ीमत न आँकी जाए। यह बात सबको समझना चाहिए कि लेखक किसी भी फ़िल्म या सीरियल का एक मज़बूत स्तम्भ होता है, जिसके बिना कुछ भी सम्भव नहीं।
सोच बदलेगी तो भोजपुरी सिनेमा भी बदलेगा-
अभी भी समय है, यदि हम सभी एक जुट हो कर अगर जी-जान से मेहनत करेंगे और कोशिश करेंगे तो भोजपुरी सिनेमा को निश्चित तौर पर लोग एक नए नज़रिये से देखना शुरू कर देंगे। मैं मानता हूँ कि भोजपुरी सिनेमा में अश्लीलता थोड़ी कम हुई है और अगर हम चाहेंगे तो यह न के बराबर हो सकती है और फिर देखिए भोजपुरी सिनेमा का अंदाज़ और एक नया चेहरा। हम अच्छा बनाने की कोशिश करेंगे तो लोग अच्छा देखने की आदत डालेंगे। आज दर्शक भोजपुरी सिनेमा में अश्लीलता देखना इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि हम उन्हें वही परोसते हैं। हम अगर उन्हें बुरा देखने की आदत लगा सकते हैं तो अच्छा देखने का भी आदी बना सकते हैं और यह हक़ीक़त है। अगर ऐसा हो गया तो देखेंगे आप, भोजपुरी सिनेमा का मान-सम्मान बढ़ जाएगा और फिर इसे वो भी लोग देखना शुरू कर देंगे, जो भोजपुरी के नाम पर ही अपना चेहरा अज़ीब सा कर लेते हैं और मेरी दिली ख़्वाहिश है कि ऐसा हो। और असम्भव नहीं यह, अगर ठान लिया जाए तो। जैसे ही हमारी सोच बदलनी शुरू हुई, हम में बदलाव आना शुरू हो जाएगा और देखते-देखते भोजपुरी सिनेमा का भी एक नया ढंग और नया रंग लोगों के सामने उभर कर आएगा।
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