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WELCOME TO MY BLOG: सिलसिला ज़िन्दगी का

A HEART TOUCHING POEM : तू भी चला चल राही

WRITTEN BY: SHILPA UPADHYAYA

ज़िन्दगी चलती है
तू भी चला चल राही!
क्या है ये ज़िन्दगी?
किसी के लिए  सपना!
किसी के लिए द्वेष!
जाने कितनी परिभाषा होंगी इसकी
हज़ारों लोगों की तरह मैंने भी देखा
ज़िन्दगी को अपनी नज़रों से!
ज़िन्दगी द्वेष है या प्यार!
या दोनों!
पर चलती है हमेशा

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द्वेष!
किसी का दुख!
किसी चीज़ का अफ़सोस करना!
जो चाहा था क्यों न मिला?
काश! मैं अमीर होता
काश! गायक होता
काश! ये!
काश! वो!
या फिर राग!
मेरे पास बड़ा घर है!
व्यापार है!
और ना जाने 
क्या, क्या क्या?
हज़ारों लोगों के
हज़ारों ख़्वाहिशों की 
राग-द्वेष है ये ज़िन्दगी!
जो सदियों से चलती आ रही है 
और चलती रहेगी !
अनंत काल तक!

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तो राही!
चलता चल तू भी
हर हाल में!
पर स्थिर हो कर
सोच कर, समझ कर!
ना राग रख, ना द्वेष!
ढूंढ़ ख़ुद को तू कहाँ है?
और फिर चल दे
आंखें खोल कर
अपनी मंज़िलों की ओर!
हज़ारों राग-द्वेषों के साथ, बस!
यही है ज़िन्दगी!
जो आज है, कल होगी
और कभी थी!
ये ज़िन्दगी! ये ज़िन्दगी!









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