Bridge सूखी हुई डाली पर भी गुल नज़र आ रहा था ख़्वाबों की दरिया में उम्मीदों का पुल नज़र आ रहा था। वो अपने वादों से मुक़र गया, बेवफ़ाई पर ...
Bridge
सूखी हुई डाली पर भी गुल नज़र आ रहा था
ख़्वाबों की दरिया में उम्मीदों का पुल नज़र आ रहा था।
वो अपने वादों से मुक़र गया, बेवफ़ाई पर उतर गया
मैं रो रहा था और वो हंसने में मशगूल नज़र आ रहा था।।
दोस्तों! कहते हैं कि किसी भी इंसान को सबसे ज़्यादा दर्द तब होता है, जब उसके अपने छूटते हैं और उसके सपने टूटते हैं। शायद इससे बड़ा दर्द कभी किसी को महसूस नहीं होता है।
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ज़रा सोचिए!! जिन उम्मीदों की नाव पर सवार हो कर, सपनों का बोझ ले कर हम कश्ती तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हों, और बीच मजधार में अचानक नाव डगमगा कर डूबने लगे। इसी दौरान, अपनी-अपनी जान बचाने की ज़द्दोज़हद में सपनों ने हमारा हाथ छोड़ दिया। मैं तैरते हुए भी उस सपने को ढूंढ रहा हूँ और मेरे सपने मुझे छोड़कर कहीं दूर निकल गए। मैं दरिया से बाहर आया, उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की। नहीं मिले। मैं इसी उम्मीद में वर्षों तक इंतजार करता रहा कि वो मेरे सपने थें, किसी ना किसी रोज़ मेरे पास लौटकर ज़रूर आएंगे। लेकिन कुछ समय बाद पता चलता है कि वो सपने किसी और दुनिया में किसी और जगह की रौनक बढ़ा रहे हैं। वो कल तक हमारे थे, आज वो किसी और के हो गए। जिनका मैंने वर्षों तक रास्ता देखा, वो ख़ुद ही किसी रास्ते के मुसाफ़िर हो गए।
बहुत दर्द होता है न साहब! किसी ने ठीक ही कहा है-
मैंने छोड़ा था ज़माना जिन्हें पाने के लिए
वो ही छोड़ चले हमें ज़माने के लिए।
मैं जो लिख रहा हूँ। ये कोई कहानी नहीं। बल्कि ये वो हक़ीक़त है, जिसे आप समझ गए होंगे। बहुत दुख हुआ, पता चला जब कि नौरंगा घाट पर पक्का Bridge नहीं, बल्कि अब शिवपुर घाट पर Bridge का निर्माण किया जाएगा। जब मैंने यह ख़बर पढ़ी, तो मैं उदास हो गया। सच बता रहा हूँ, बहुत दर्द हुआ। क्योंकि मैं ख़ुद चाहता था, यह मेरी दिली ख़्वाहिश थी कि नौरंगा घाट पर पक्का Bridge बने। इससे ना सिर्फ लोगों की ज़िंदगी आसान हो जाएगी, बल्कि हमारे गाँव की तक़दीर और तस्वीर भी बदल जाएगी।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सभी उदास और दुखी होंगें। सभी के मन को ठेस पहुंचा होगा- क्योंकि, वादों और उम्मीदों की गंगा में बह गया नौरंगा घाट के पक्का पुल (Bridge) का सपना।
ख़ैर, निराश और उदास होने की कोई बात नहीं। लड़ाई पूरी शिद्दत से लड़ी गई थी, नौरंगा ग्राम सभा के लोगों द्वारा। सभी ने जी जान लगा दिया था। लेकिन परिणाम ग्रामीणों के पक्ष में नहीं आया।
लेकिन अभी जंग बाकी है। यह महज़ अंतिम इम्तिहान नहीं था। कहते हैं कि "सितारों से आगे जहां और भी बाक़ी है, इश्क़ में इम्तिहान अभी और भी बाक़ी है"।
मुझे बख़ूबी मालूम है, मैं देखते आ रहा हूँ- यहाँ के ग्रामीणों को किसी के रहमो-करम की ज़रूरत नहीं है। यहाँ के ग्रामीणों ने जो भी किया है, जो भी बनाया है अपनी चाहत और लगन की बदौलत। अगर गंगा नदी पर पुल की माँग नौरंगा ग्राम सभा के ग्रामीणों द्वारा की जा रही थी, तो कोई भीख नहीं मांगी जा रही थी ल, बल्कि यहाँ के लोग अपना हक़ माँग रहे थें। बस वक़्त-वक़्त की बात है। आज वक़्त तुम्हारा है तुमने बेवफ़ाई कर दिया। कल हमारा भी वक़्त आएगा, इसका करार ज़वाब देंगें।
दोस्तों! बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि गंगा घाट पर Bridge बने या न बने, बस अपने दिल के Bridge को कभी कमज़ोर ना होने देना। एक दिल से निकल रहे और दूसरे दिल तक पहुंच रहे, रिश्तेरूपी Bridge को हमेशा जोड़ कर रखना। क्योंकि यही एकता की Bridge तुम्हारे हर जंग का ब्रहमास्त्र बनेगा।
और चलते-चलते मैं सभी से यही कहूंगा-
गर ज़िन्दगी है तो जीने की आस पैदा कर
अपने दिल में एक नया विश्वास पैदा कर।
हर ज़ुबाँ पर तुम्हारा ही नाम हो, हर जगह
अपने क़दमों से एक नया इतिहास पैदा कर।।
मिलता हूँ ज़ल्दी ही एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए Bye!!
Sanghe sakti dubara ladai ladne ki jarurat hai
ReplyDeleteOfcourse Sirg...aur iss ladaai me mai bhi shamil hun... hum jitenge aur zarur jitenge
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