आइंस्टाइन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले बिहार के महान गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह कभी उन्हें चेहरे पर मुस्कुराहट लिए तो कभी आ...
आइंस्टाइन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले बिहार के महान गणितज्ञ
डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह
कभी उन्हें चेहरे पर मुस्कुराहट लिए तो कभी आँखों में आंसू लिए हुए देखा जाता रहा है. कभी चलते हुए तो कभी किसी जगह पर थम कर घंटों सोचते हुए लोगों ने देखा है उन्हें.
ज़वानी का दौर था तब उन्हें लोग वैज्ञानिक जी कहते थे। क्योंकि वो साधारण इंसान नहीं हो सकता जो आइंस्टाइन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दे, दे। तभी तो इस महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी ज़िंदगी की कहानी सबसे अलग है.
तो आईये मिलिए इस भारत के महान गणितज्ञ और बिहार की आन, बान शान डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह जी से जो आज कहीं गुमनामी की गलियों में खो गए हैं?
आइंस्टाइन के सिद्धांत को दी चुनौती
बिहार के भोजपुर में जन्मे वशिष्ठ ने आइंसटीन के सिद्धांत E= MC2 को चुनौती दी थी। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाले वशिष्ठ स्किट्सफ़्रीनिया से पीड़ित हैं। बीमारी के चलते इनकी पत्नी से इनका अलगाव हो गया था और अब इलाज के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं। इन्होंने अपने जीवन में जितनी उपलब्धियां हासिल कीं, अब उतने ही लाचार हैं।
बिहार से कैलिफोर्निया तक का सफ़र
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह तब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे. उसी समय कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर कैली की नज़र उन पर पड़ी. कैली ने उनसे मिलते ही उनकी प्रतिभा की पहचान कर लिया और १९६५ में गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अमेरिका चले गए.
Wonderfull- वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था.
पढ़ने और लिखने की दुनिया
तकरीबन 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं. अब भी किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त है.
पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह बताते है, "अमरीका से वह अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वह आज भी पढ़ते हैं. बाकी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती है.'' (Content: BBC)
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